रविवार, 23 अक्टूबर 2011

दीपावली.....

घुरहू की बिटिया घिघियाती,बोतल दूध से खाली है ,
मेरा निकला दिवाला है उनके घर में दीवाली है।
दरवाजे पर बूढ़े बाबा आसूं पीकर सोते हैं,
आँगन में बेटवा पतोह दारू पीकर के लोटे हैं।
पेंशन पाने वालों के आगे डायबिटीज की थाली है,
मेरा निकला दिवाला है उनके घर में दीवाली है।
पाँव परूँ मैं तेरी गरीबी ममता से खिलवाड़ न कर
नित लुभावन दिखावे में रिश्तों पर प्रहार न कर,
लोक लुटेरे होश में आओ दीया तेल से खाली है,
मेरा निकला दिवाला है उनके घर में दिवाली है।

दीपशिखा की ढेरों कान्तियाँ हर देशवासी के चरण चूमें ..हे माँ ....

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