रविवार, 13 नवंबर 2011

गाँधी का भारत बनाम नेहरू का भारत

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु का एक सौ बाईसवां जन्मदिन देश मनाने को आतुर है। आधुनिक विकास के जनक के रूप में अगर नेहरु जी को परिभाषित किया जाय तो कत्तई गलत नही होगा। देश में जीवन जीने के दो तरीके के रूप में गाँधी और नेहरु की दो धाराएँ लोगों के सामने थी। जाहिर सी बात है की नेहरु नहीं होते आज विज्ञान की दौड़ में हम आगे की तो छोड़ पीछे भी नहीं होते। लेकिन इसी के साथ इसका भी जिक्र गलत नहीं होगा कि विज्ञान के अति कि परिणति विनाश के रूप में होती है। आज गाड़ी,घोडा,कल कारखाना ,फोन ,इंटरनेट इत्यादि,या खेती में रासायनिक उपयोग के तहत अकूत फसलों का आगम,यह सब के पीछे नेहरु जी का सपना काम कर रहा है। तो वही टूटते गाव ,बिखरते पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते गाँधी के न पूरे हो पाने वाले सपनों की आह बनकर पल्लवित पुष्पों को बिखेरने के समान है।
गाँधी की नीतियों को भुलाना निश्चय रूप से खलता हुआ नजर आरहा है,कारन हर विकास को आज हम सरकारी चश्मे से देखना शुरू कर दिए है,एक अरब पच्चीस करोड़ की आबादी को मुठी भर सरकारी लोग उनकी सारी आवश्यकताओं पर भला कैसे खरा उतर सकती हैं। पहले सवा निर्भर समाज था,आज गाँधी गाँव तक मनरेगा के तहत पहुचाये तो जा रहे है लेकिन अपने विचारों के खिलाफ ,परिणाम स्वरुप गाव दिन -प्रतिदिन पिछड़ते जा रहे हैं। हम चाहे जितना विकास का डंका पीट लें। पहले सड़क ख़राब है तो हर घर से निकल लोग श्रम दान कर दो चार दिन में सही कर देते थे। कोई अमीर या गरीब नहीं था किसी के पास घर नहीं है तो पूरे गाव के लोग एक साल उसके नाम थोड़ी मेहनत करते थे और उसके पास घर बन जाता था,वो काम आज हम सोच रहे है की मनरेगा कर लेगा,या किसी योजना के तहत सबको घर मुहैया करा दिया जायेगा तो असंभव है.उदाहरण के लिए आये दिन कांशीराम आवास योजना में धांधली को खुले आम पढ़ा जा सकता है।
अतः नेहरु के सपने गाँधी के रास्ते अगर हम पाने का पहल करे तो सामाजिक खतरे में कमीं आ सकती है और गाँधी का सम्मान और इस रास्ते से विकास नेहरु जी को सच्ची श्रध्हांजलि होगी ।

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