तथाकथित नक्सलवादी नेता किशनजी का मारा जाना ,और भारतीय राजनीती का बाजार गरम हो जाना ,ये बात कुछ हाजमा ख़राब कर रही है,ये कैसी विचाधारा जो खून की प्यासी हो। परदे के पीछे लचर बुद्धजीवी और नेता सरे लोग घडियाली आँसू बहाने में लगे है,खासकर वो लोग जो कभी सीमा पर लड़कर मरने वाले किसी सैनिक की मौत पर कभी आख भी नम नहीं कर पाते वो सबसे ज्यादा चिल्ला रहे हैं। एक बात समझ से परे है की ये श्रृष्टि का नियम बन चूका है की गोली तो उसी को मारी जाती है जो गोली मारता है,जिसने किसी को एक कप चाय न पिलाई हो भला उस बिचारे पर कोई अपने सौ रूपये की गोली क्यों बर्बाद करने जायेगा।
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