हालाँकि ये कहना राष्ट्रद्रोह सरीखे है लेकिन एक बार निश्चय ही इस बात पर बहस हो जानी चाहिए की उत्तरप्रदेश में हो रहे चुनाव में मतदाताओं की स्थिति क्या है,ये वास्तव में मतदान है या रक्तदान। फिर मैंने कहा निश्चय ही मतदान कारण रक्तदान कर आदमी तुरंत दुसरे के कल्याण में सहयोगी हो जाता है साथ ही साथ ही रक्तदान की पीड़ा से भी मुक्त होता है लेकिन मतदान पांच साल कष्ट कारी होंगे। फिर मेरे भाव बदलते यहीं बाते आती है कि नहीं निश्चय ही यह भयावह रक्तदान है कारण कि आप के मत के माध्यम से आपके पांच साल तक खून पीने कि छूट जीतने वाले को मिल जाती है । पास बैठे राजनीती के पंडित एक मित्र ने कहा अरे भाईसाब मतदान नहीं मतदाम की बात करिए आज मजा तो कल के सजा की कौन देखता है। बैनर पोस्टर लाउड स्पीकर पर सबसे कम खर्च होते हैं उसपर सरकार के नजर टेढ़ी है,लेकिन उसका क्या होगा जहाँ खुले आम किसी कालेज के आँगन में बाटी चोखा खिला कर दक्षिणा बाटे जा रहे हैं।
बहरहाल मैं तो अब तक उधेद्बुन्द में ही हूँ की ये है क्या......रक्तदान या मतदान ....या फिर वही मतदाम ......अब आप ही अपना विचार दें।
मंगलवार, 24 जनवरी 2012
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में प्रशासन के निकम्मेपन की हदें
आजकल उत्तर प्रदेश में जहाँ देखिये वहां सिर्फ और सिर्फ चुनावी हलचल में सराबोर नजर आ रहा है,लेकिन प्रशासन चुस्ती और सख्ती के नाम पर सिर्फ और सिर्फ संविधान की बढ़िया उकेरने में लगा हुआ है। चुनाव संपन्न करने की शिचिता के बावत लगातार आ रही समस्याओं से जनता त्रस्त होती जा रही है। टी एन शेषन पूर्व मुख्या चुनाव आयुक्त ने जो वोटर लिस्ट को आम करने ढांचा बनाया ,उसकी खामियां आज बीस सालों बाद इस कदर बढ़ गयी हैं कि हाथ में मतदाता पहचान पत्र जोकि चुनाव आयोग द्वारा प्रदत्त है लिए प्रत्याशियों के समर्थक और प्रस्तावक जब कचहरी परिसर पहुच रहे है नामांकन के लिए तो उनका नाम वोटर लिस्ट में न होने कि बात कह उन्हें बेशर्मी से बैरंग वापस कर दिया जा रहा है। आप जरा सोचिये कि जब प्रत्याशियों के साथ जो कि निःसंदेह जागरूक मतदाता होंगे ऐसी घटनाये हो रही है तो आम मतदाता कितना परेशां होगा। इस सबके पीछे निश्चय ही धन और बल का खेल चल रहा है और चुनाव सही से संपन्न कराने के नाम पर ये सरकारी नौकर शाह आसानी से जम्नता को लूट रहे हैं ताकि जागरूक लोग आगे न आ पाए कानूनन उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाय और फिर वही घोटाले गर्दी बढ़े।
रविवार, 8 जनवरी 2012
सूनी हो गयी अन्ना की भ्रष्टाचार मिटाने वाली दुकान
एक बारगी ऐसा लगा मानो देश से भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिट जायेगा। खूब उछले अन्ना और उनके तिकड़ी गिरोह। खूब पैसा भी आया ,और फोटो भी छपा। जिंदगी में और शायद इतिहास में पहली बार इस तरह का बाजारू आन्दोलन देखने को मिला जहा पहले से ही टेंट लगाए ,लोग पहुच रहे हैं जैसे रामलीला होने वाला हो ,भोजन में मेनू बनाये जा रहे है,खूब खिलाने-पिलाने के बाद भी मुंबई में सुपर फ्लॉप हो गयी उनकी रामलीला। सरे चरित्र धरासायी हो गए इसका कारन की अन्ना जी का आन्दोलन बाजारू था ,सबसे पहले धन की व्यवस्था की गयी ,धन की जरूरत से नाकारा नहीं जा सकता लेकिन अगर ये आन्दोलन धुल में बैठ कर लोगों को घर से न बुलाकर बल्कि अकेले बैठ कर चलाया जाता तो देर से ही सही लेकिन सुधार और सफलता मिलती।
अन्ना साब को समझ में नहीं आता की वो अपने को गांधीवादी कहते है,और गांधी चौहत्तर लोगों की दो सौ किलोमीटर की पैदल दांडी यात्रा को हजारो में ताफ्दील कर दिया। खैर बहुत माथा खपाने में मजा नहीं आया इन लोगों को,अब धीरे-धीरे इनकी दुकान फीकी पड़ती जा रही है,हाँ कुछ दिन बाद कोई नया लोकपाल आएगा,इनको कौन समझाए की लोकपाल को कत्तई नहीं नाकारा जा सकता लेकिन सिर्फ लोकपाल से कुछ भी बदलने नहीं जा रहा मित्रों ,,,,,अलबत्ता किसी दुसरे अन्ना की कोई नयी दुकान के नए ग्राहक आप फिर बन सकते हो। .........सावधान
अन्ना साब को समझ में नहीं आता की वो अपने को गांधीवादी कहते है,और गांधी चौहत्तर लोगों की दो सौ किलोमीटर की पैदल दांडी यात्रा को हजारो में ताफ्दील कर दिया। खैर बहुत माथा खपाने में मजा नहीं आया इन लोगों को,अब धीरे-धीरे इनकी दुकान फीकी पड़ती जा रही है,हाँ कुछ दिन बाद कोई नया लोकपाल आएगा,इनको कौन समझाए की लोकपाल को कत्तई नहीं नाकारा जा सकता लेकिन सिर्फ लोकपाल से कुछ भी बदलने नहीं जा रहा मित्रों ,,,,,अलबत्ता किसी दुसरे अन्ना की कोई नयी दुकान के नए ग्राहक आप फिर बन सकते हो। .........सावधान
सोमवार, 2 जनवरी 2012
देखो कही कुछ सस्ता तो नहीं रह गया
आज सरकारी नीतियां आये दिन बदल रही हैं। कमजोर और गरीब किसी के पैमाने में नहीं है। अगर कोई गलती से छूट भी गया गरीबी की मर झेलने के लिए तो,उसकी समझ बदल जाती है वो भी कही न कही से लूट खसोट का अंग बनने को आतुर है। सरकारे अब चश्में नहीं लेंस लगाकर जनता को देख रही हैं;एलानियाँ आवाज दे रही है की कही कुछ सस्ता तो नहीं रह गया ,कही अब भी कुछ गरीबों के पहुच में तो नहीं,कही किसी गरीब का बच्चा स्कूलों में दाखिला तो नहीं पा गया,कुछ ऐसी ही अल्लाप लगायी जा रही है हमारे देश के भाग्य विधाताओं द्वारा। तो गरीब अगर अपनी सोंच बदलने को मजबूर हो गया तो कौन सा पाप हो गया।
एक बड़े पुराने साथी दो दिन पहले मिले कहे यार 'ये बार बतावा केकर करी,विधानसभा चुनाव में,तोहरे साथे त रहले घटा हाउ ,अब न रहब ,न खईब्या न खाए देब्या"। बरबस मेरी बदतमीज जुबान बोल पडी कितने वोट हैं आपके पास ,वो बोले पूरे दो हजार जेब में है,अब क्या था बहस सुरु । अभी भी वो या तो खुद को धोखे में रखने के आदी हैं या झूठ में जीने की आदत। कैर अभी भी हिम्मत जुटाए अगर कोई सामाजिक आदमी की उसके कहने पर कोई वोट कर देगा तो उसकी पीठ थपथपानी होगी।
अच्छा लगा मिथ्या विश्वास ही सही की कम से कम ,किसीका विश्वास तो अभी सस्ता है ही...........
एक बड़े पुराने साथी दो दिन पहले मिले कहे यार 'ये बार बतावा केकर करी,विधानसभा चुनाव में,तोहरे साथे त रहले घटा हाउ ,अब न रहब ,न खईब्या न खाए देब्या"। बरबस मेरी बदतमीज जुबान बोल पडी कितने वोट हैं आपके पास ,वो बोले पूरे दो हजार जेब में है,अब क्या था बहस सुरु । अभी भी वो या तो खुद को धोखे में रखने के आदी हैं या झूठ में जीने की आदत। कैर अभी भी हिम्मत जुटाए अगर कोई सामाजिक आदमी की उसके कहने पर कोई वोट कर देगा तो उसकी पीठ थपथपानी होगी।
अच्छा लगा मिथ्या विश्वास ही सही की कम से कम ,किसीका विश्वास तो अभी सस्ता है ही...........
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