रविवार, 8 जनवरी 2012

सूनी हो गयी अन्ना की भ्रष्टाचार मिटाने वाली दुकान

एक बारगी ऐसा लगा मानो देश से भ्रष्टाचार का नामोनिशान मिट जायेगा। खूब उछले अन्ना और उनके तिकड़ी गिरोह। खूब पैसा भी आया ,और फोटो भी छपा। जिंदगी में और शायद इतिहास में पहली बार इस तरह का बाजारू आन्दोलन देखने को मिला जहा पहले से ही टेंट लगाए ,लोग पहुच रहे हैं जैसे रामलीला होने वाला हो ,भोजन में मेनू बनाये जा रहे है,खूब खिलाने-पिलाने के बाद भी मुंबई में सुपर फ्लॉप हो गयी उनकी रामलीला। सरे चरित्र धरासायी हो गए इसका कारन की अन्ना जी का आन्दोलन बाजारू था ,सबसे पहले धन की व्यवस्था की गयी ,धन की जरूरत से नाकारा नहीं जा सकता लेकिन अगर ये आन्दोलन धुल में बैठ कर लोगों को घर से न बुलाकर बल्कि अकेले बैठ कर चलाया जाता तो देर से ही सही लेकिन सुधार और सफलता मिलती।
अन्ना साब को समझ में नहीं आता की वो अपने को गांधीवादी कहते है,और गांधी चौहत्तर लोगों की दो सौ किलोमीटर की पैदल दांडी यात्रा को हजारो में ताफ्दील कर दिया। खैर बहुत माथा खपाने में मजा नहीं आया इन लोगों को,अब धीरे-धीरे इनकी दुकान फीकी पड़ती जा रही है,हाँ कुछ दिन बाद कोई नया लोकपाल आएगा,इनको कौन समझाए की लोकपाल को कत्तई नहीं नाकारा जा सकता लेकिन सिर्फ लोकपाल से कुछ भी बदलने नहीं जा रहा मित्रों ,,,,,अलबत्ता किसी दुसरे अन्ना की कोई नयी दुकान के नए ग्राहक आप फिर बन सकते हो। .........सावधान

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