प्रेम उवाच सुनकर थका मन एक दिन प्रेम के विषय में सोचा तो घृणा सी हो गयी,,सड़क पर एक माँ अपने बच्चे को एक बड़े पुरवे मलाई खिला रही थी उसके प्रेम को देख उसे भिखारन खाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हु ,और ये भी कहने में कोई संकोच नहीं की मेरे माँ-बाप ने उतनी मलाई मुझे कभी नहीं खिलाई ,माँ के प्रेम को प्रणाम कह चला आया,रस्ते में एक महिला मुझे लगता है अपने
पति से झगड़ रही थी शायद वो अपनी मान को कुछ पैसे देने जा रहा था,महिला की डाट उसकी घिघी बढे थी और वाह वापस रुक जाता है,,मुझे लगा अब रुकना गौतम बुध्ह बनना है,,,
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