मंगलवार, 8 मई 2012

चाय नहीं मट्ठा हो राष्ट्रीय पेय

भारत सरकार के योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने कहा कि शीघ्र ही चाय को राष्ट्रीय पेय घोषित किया जायेगा। मेरे समझ में नहीं आता कि क्या किसी को राष्ट्रीय पहचान दे देना अकेले सरकार का विषय है। निश्चय ही चाय की लोकप्रियता सेनाकारा नहीं जा सकता लेकिन सिर्फ लोकप्रियता के आधार पर अगर बनाने की शुरुआत हम करेंगे तो शराब की लोकप्रियता इस कदर पिछले कुछ वर्षो से बढ़ी है की प्रदेश सरकार के पूर्व में रहे एक आबकारी मंत्री ने अपने बयां में साफ कहा की बीयर गंगा जल से पवित्र और दूध से अधिक ताकतवर है,उनके बयां को ध्यान में रखते हुए माननीय अहलुवालिया साहब को बीयर और शराब को ही राष्ट्रीय पेय घोषित कर देना चाहिए।
मट्ठा हमारे देश की विरासत है,अगर हम उसकी उपयोगिता पर बात करे तो छे भूख मारने का कम करती है सेहत कही से उससे बेहतर नहीं हो सकता,उसकी चुस्की भर ही ली जा सकती है जबकि मट्ठा गाँव का किसान अपने लिए बोरन के रूप में प्रयोग करता था,रोटी से खाता था ,भात से खाता था,भर पेट उसे पी सकता था ,कोई सुगर और रक्तचाप नहीं बढ़ता,,,,,फिर भी मट्ठा नहीं होगा राष्ट्रीय पेय चाय होगा ,,,,ये बात भी सच है की जो चीजे अब तक राष्ट्रीय हुई है उनका बंटाधार ही हुआ है लेकिन मट्ठा किसी के बंटाधार करने के वश की बात नहीं है कारण टूटते गाँव ने शहरी बनने के चक्कर में पहले ही मट्ठे को बिसरा दिया है,लेकिन शहर उसको अपनाया ,और गाँव गाव ही है चाह कर भी अपने को मट्ठे से अलग नहीं कर पायेगा ,,और मेरे एक बड़े भाई और समाजवादी नेता अफलातून जी के शब्दों में मट्ठा सरकार के बिगडैल तंत्रों के जड़ में डालने में भी मट्ठे की मजबूत उपयोगिता है,,,,,,,,,,,,,अतः मट्ठा ही राष्ट्रीय पेय हो इसके लिए सबको आवाज उठाने की जरूरत है,इसे राजनीती से प्रेरित न मानकर बल्कि मट्ठा महज एक पेय नहीं एक संस्कृति है एक सभ्यता है एक जीवन पध्हती है इस लिए ,,,,,,,,,,,,,,

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