पांच साल पहले आज के ही दिन एक राहगीर को संकटमोचन असि नदी पुलिया के पास उसको यह समझाने में कि यह नदी है ,,यह अंकुरित हुआ कि क्यों न इसके उद्धार की लड़ाई लड़ी जाय । जिसके निमित्त काशी के युवाओं और बुद्धिजीवियों की एक टोली "असि बचाओ संघर्ष समिति "ने संघर्ष का ऐलान किया । लम्बी लड़ाई चली । इस आंदोलन ने देश के केंद्रीय नेतृत्व से लेकर आला अधिकारियों तक को बखूबी से झकझोरा । जगजाहिर है की कोई भी आंदोलन जब गति पकड़ता है तो उसमे अपना कोई स्वार्थ और भविष्य तलाश रहे ताक लगाये बैठे लोगों की जमात भी हाजिर होती है । ये आंदोलन भी इससे अछूता नहीं रह पाया । बंद कमरे में एक बोतल पानी रख कर नदियों के सुधर और उद्धार की बात करने वाले कालनेमी प्रकृति के तथाकथित जल वैज्ञानिकों की फ़ौज खड़ी हो गयी ,,तालाब और झील पाट कर ही मॉल नुमा विद्यालय चलाने वाले नवोदित शिक्षाविद भी इसमें नाम लिखने की कोशिश से वंचित नहीं रहे । असि बचाओ संघर्ष समिति के अथक प्रयास और संघर्षों का ही रंग लाना था कि प्रदेश सरकार ने असि के उद्धार के लिए ८. ८ आठ करोड़ अस्सी लाख रूपये जारी किये । इस धन राशि के निर्गत होने की खबर अखबारों आई नहीं कि असि के बचाने वालों की बाढ़ आ गयी । ऐसे गिरोह जो सरकारी पैसों के लिए और उनके बल पर आंदोलन करने का भ्रम फैलाते नजर आते हैं ,,उन गिरोहों की सक्रियता बढ़ गयी । ये शायद प्रशासनिक मोहरे थे जो भोथरा करने के लिए साजिशन भेजे गए थे ।
गुरुवार, 17 दिसंबर 2015
बुधवार, 9 दिसंबर 2015
युवाओं को फिर मिलेगा लॉलीपॉप । देश युवाओं के कंधे पर है। युवाओं को सशक्त बनाना और राजनीति की मुख्य धारा से जोड़ना हमारा मुख्य ध्येय है । जिस राष्ट्र का युवा उदासीन हो जाता है उसकी विकास धीमी पड जाती है । युवा क्रांति ही बदलाव ला सकती है , जैसे हजारो हजार नीतिवचनानि और सुभाषितानि के श्लोक टाइप के वाक्यांशों की बारिश का समय फिर आ रहा है । युवाओं तैयार रहो झंडा ढोने के लिए ,,गला फाड़ चिल्लाने के लिए ,,अंततः यही तुम्हारे हिस्से में था ,रहा है और रहेगा । करते रहो क्रन्तिकारी भाषण ,,हम जब वो थे ,,तो उनकी राजनैतिक हैसियत मेरे सामने शून्य थी,,वो पैसा कमाए मैं झण्डाबरदारी किया ,,आज वो मंचासीन हो भाषण भिडाते हैं ,हमें उनके लिए मंच तैयार करने का जिम्मा सौपा जाता है ,,कोसो जितना कोस सकते हो । अधिक दिमाग लगाओगे तो चुनाव के वक्त खोजना भी बंद कर देंगे ,, लोग तुमसे सस्ते में उपलब्ध है,फिर गली चौराहे पर झूठ बोल के अघाना कि फला भैया ने कैंट से फोन किया था ,तो फला ने बलिया और ग़ाज़ीपुर से,दक्षिणी से गुरु तो घरवे आ जा रहे हैं सुबहे सुबह । गाहे बगाहे उनके यहाँ के कार्यक्रमों में कोशिश करके किसी तरह से निमंत्रण हाशिल करते रहो ,और सीना फुलाओ कि उनके यहाँ जाना बहुत जरुरी है कई दिन फोन किये ,,भले उस दिन छोटी मौसी जो आपको पाली पोषी है के बिटिया की शादी में लाख कहने के बाद भी न पहुँचो । अरे अब वो दिन लद गया जब तेज तर्रार की तलाश करके नेता उन्हें आगे बढ़ाता था । छात्र संघों से प्लेसमेंट की तर्ज पर युवाओं को आगे ले जाता था । पर आज भले ही लोकतंत्र की इन पौधशालाओं के उर्वर पौधे कहीं संसद और विधानसभा में अपनी राजनैतिक फुलवारी चकाचक सजाये हो ,,लेकिन तुम इनके बड़े खतरे हो ,,ये वो है जो जिन सीढ़ियों को लगा कर छत पर चढ़ते है उन्हें वापस खीच छत पर ही रख लेते है ,ताकि कोई और अब न चढ़ पाये । पांच साल फेफियाओगे ,,इस बार नहीं उस बार का वायदा मिलता रहेगा ,,फिर कोई दू बार हारा तो कोइ चार बार हारा ,,लेकिन अपने मक्खन मलाई में तगड़ा है तो समझो वही अगड़ा है । अब भी समय है चेतो ,,,जिन्दा कौमे पांच साल इन्तजार नहीं करती ।
शुक्रवार, 14 अगस्त 2015
बाप मरे अन्हारे घरे ,बेटवा क नांव पावर हॉउस ,,,, रामनाम गुरु क पारा कुछ खासे गरम रहा,,,,,शुरुआते क बरसात देखकर नया छाता जो खरीद लिए थे ,,अ ई मौसम बेईमान हो गया ,,,,छाता कंधे पे रख ,,बड़बड़ाये जा रहे थे ,,ई ससुरा हमके पता रहल कि अगर हम अब्बे छाता कीन लेब त इनकर कुल पानी जरि जाई ,,,केसे ,केसे लड़े अकेले रामनाम ,,,तब तक उनसे कभी न पटने वाले लंगोटिया यार चियां परधान टकराइये गए ,,,चियां आपन गाय भैस किसी के खेत में घुसा के खेत क सूपड़ा साफ कर देने के लिए विख्यात थे ,,,एक बार गाॉव में अधिक विद्वान लोग चुनाव लड़ गए आपसे में ,तो गांव वाले चिंया को ही जमकर वोट देके परधान बना दिए कि कम से कम खेतवा त बख्शे रहेगा ,,,,,चिंया काहे माने ,उवाची दिए ,,,,,का मर्दवा रामनाम सबरवे सबेरे का बरबरात हौआ ,,,,,देखत हौवा दिल्लीया में देवर भौजाई के तरह सब लड़त हउए ,,अ तू इहा छतवे पे कुर्बान बाड्या ,,,,रामनाम ऐसे खिसिआए जैसे किसी दारूबाज का पहिला पैग मुह लगाते ही छीन लिया जाय ,,,सुना ये चिंया ,,एक बेर परधान का हो गइला की समझदार क पोछे बूझे लागला का ,,रातभर सूते के नहीं मिळत हाउ ,,,रोड़े पे चले में डरे लगत हौ ससुरा कि कही किडनी सरक के ये कोना से वो कोना न चली जाये ,,अ तोहके खाली दिल्लीए देखात हव ,,,,,,चिंया बोले ,,,तू बुड़बके रही जैबा का मर्दे ,,,,देशवा दील्लीए से न चली ,,,,रामनाम को कोई बुड़बक कह दे इतनी मजाल कहाँ ,,,,फायर ,,,,सुना ,,,मरे एक त छाता क पैसा बेजाए गईल ,,अब तू मत सुलगावा ,,,बाप मरे अन्हारे घरे बेटवा क नांव पावर हॉउस ,,,चिंया समझ गए ,,कई पुस्त नेवति देयी गुरुआ भागो ,,,रामनाम दौरा लिए ,,,सुना ,सुना,,,ले चली कथा स्वयम्बर क,,कहि डालि हाल जनकपुर क ,,,,,,भला अब कहाँ चिंया टिकने वाले ,,,,
गुरुवार, 23 अप्रैल 2015
ये पैसे वाले भी न, क्या गजब हैं ,,सरे राह अपने हिस्से की गर्मी दूसरे को झेलने को मजबूर ही नहीं करते बल्कि झेलवाते हैं वो भी डंके की चोट पर । बनारस बहुमंजिली इमारतों का गढ़ बनता जा रहा है । जहाँ पर भी खाली जमीन मिली ये तथाकथित अत्याधुनिक धनकुबेर वहां सर से टोपी गिरा देने वाली ईमारत बनाने को बेताब से हैं से हैं। अब इन बहुमंजिली इमारतों में प्राकृतिक हवा पानी तो मिलने से रहा। बनारस जमीन के दलालों की तो लगभग विश्वस्तरीय मंडी बन चुका है। सबसे आसान काम है न हर्रे लगे न फिटकरी रंग चोखा।
शनिवार, 4 अप्रैल 2015
गरीबों की झुग्गी झोपड़ियों में सौ पचास रुपये की कलम किताब बाँट कर अपने ईटों को टाइल्स में तफदील करने के सपने सहेज समाज कल्याण विभाग के दफ्तरों में चक्कर लगाने और अधिकारियों की चापलूसी करने वाले कालनेमी सरीखे तथाकथित आज के समाज सेवियों की बुद्धि- शुद्धि लिए श्रद्धेय नारायण देसाई पर यह लेख सुन्दरकाण्ड ही नहीं समूचा मानस पाठ है ।
शनिवार, 31 जनवरी 2015
किसी गाँव में एक साथ दो दो बारात पहुचती है ,,एक घराती पुराना रईस तो था पर दूसरे की तरह अद्यतन व्यवस्था नहीं थी ,, चकाचक व्यवस्था वाले घराती के दरवाजे भीड़ अचानक बढ़ने लगती है ,,पहले तो उसे अपनी व्यवस्था पर फक्र हुआ ,,लेकिन ,,,क्या सबका सत्कार भी चकाचक हो पायेगा ,,सनद रहे बाराती तो थाली में विस्वास रखता है ,,थाती तो दूल्हे दुल्हन के लिए ही होते है।
गुरुवार, 15 जनवरी 2015
काशी को यूं तो लघु भारत कहा कहा जाता है पर है ये लघु विश्व । निश्चित रूप से यहाँ की प्राकृतिक सम्पन्नता ने बाबा भोलेनाथ को इस कदर मोहित किया कि वो यहीं के होकर रह गए , कण कण में शिव का वास है । यहाँ गंगा वरुणा और असि वर्तमान में तीन नदिया हैं । वरुणा और असि ही वो दो नदियां हैं जिनके नाम पर वाराणसी इस शहर को कहा जाता है । हम सबके अथक प्रयास से ,,भोले बाबा के शुभाशीष और काशी के युवाओं और बुद्धिजीवियों के बलबूते पिछले चार साल के अनवरत पहल और सार्थक सोंच से शासन प्रसाशन के कान में भरी खोंट को ढीला ही नहीं वरन इस कदर उनके नाक में दम कर दिया गया था कि असि के उद्धार की बात शुरू हो गयी थी । इसके लिए नगर निगम को धन भी मिल चुका था । लोकसभा चुनाव के समय असि काशी की प्रमुख मुद्दों में रही । अभी कल के दैनिक जागरण के पहले पन्ने पर काशी की तीनों नदियां होंगी संरक्षित उनके किनारे घाट बनेंगे ,ऐसा पढ़ने को मिला ।मन गदगद हुआ । इधर चुपचाप असि नदी को पाइप डाल कर साकेतनगर में पाटा जा रहा है । पूर्व में माननीय मुख्यमंत्री जी खुद कई बार असि उद्धार की बात कर चुके हैं फिर भी अधिकारी इसे पाटने की घटिया हिमाकत कर रहे हैं । काशी के आस्थवानो ,नागरिको ,बुद्धिजीवियों एवं युवाओं से अपील है है कि असि नदी के पाटे जाने के विरोध में आगे आएं । इसी क्रम में असि बचाओ संघर्ष समिति के द्वारा कल से काशी के युवाओं ,बुद्धिजीवियों ,सामाजिक कार्यकर्ताओं ,जनप्रतिनिधियों एवं धर्मगुरुओं से घर घर जाकर उनका लिखित विचार लिया जायेगा जिसे काशी की आवाज बना देश और प्रदेश के नीति नियंताओं के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा । असि हर हाल में रहेगी ।
लिखित विचार abss.kashi@gmail.comपर भी भेजा जा सकता है । सबसे गुहार है कि असि उद्धार के इस आंदोलन को जन आंदोलन बनाये ,अपनी सहभागिता सहर्ष सुनिश्चित करें ।
लिखित विचार abss.kashi@gmail.comपर भी भेजा जा सकता है । सबसे गुहार है कि असि उद्धार के इस आंदोलन को जन आंदोलन बनाये ,अपनी सहभागिता सहर्ष सुनिश्चित करें ।
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