सोमवार, 20 अप्रैल 2020

अजीब समय है

यूं तो दुख में रिश्ते निखर और सुधर जाया करते हैं,,,,
हम गांव है।भारत गांव है,भारत बस इसलिए भारत है कि आज भी यहां गांव बसते हैं,यूं तो समूची कायनात का अस्तित्व देहाती है। रिश्तों की तासीर हमारे गांव की वो अमिट थाती है,जिसे देख कर आज भी कोई शहरी बाबू या विदेशी बाबू अपने छोटे पन पर लजा जाता है। गांव में लाख गिरावट आएगी शहर से वो हमेशा ऊंचा रहेगा ।
गांव सबकी छांव है। वहां सब जाति सब धर्म के लोग रिश्तों में बात करते हैं,इसीलिए यह धरती का सबसे प्रिय जनधन है। कई बार ऐसा देखने को मिला है कि दो परिवार अलग थलग हैं मार काट तक पर उतारू हैं,लेकिन अगर बीच में कोई दुख किसी को पड़ गया तो दूसरा इस कदर उसके लिए तन कर खड़ा होता था कि वो फफक पड़ता था ,रूह से मोहब्बत उमड़ पड़ती थी और कालांतर में ये इतनी मजबूत जोड़ साबित होती थी कि असल जोड़ भी पीछे छूट जाए।
लेकिन इस मानव रचित महामारी में ,जी हां,मानव रचित कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं, ये रिश्ते जुड़ने के बजाय बिखरते नजर आ रहे हैं। कहीं रहमान मंगरू काका को कंधा देकर राम नाम सत्य है के साथ घाट पहुचा रहा,तो कहीं गोविंद रसूलन चाची को दवाई पहुचा रहे, फिर भी वो मोहब्बत के तार आखिर क्यों बेतार बेधुन और बेसुर होते जा रहे।कोरोना वाकई जाहिल वायरस है,रिश्तों को भी नहीं थमने दे रहा।
हम बड़े संत फकीर मौलाना इत्यादि की सरजमीं के उत्तराधिकारी हैं। जिनमें से कोई इंसान नहीं था,या तो हिन्दू था या मुसलमान था। सबके पेट अपने तरीके की पीठ से सटे हुए थे।इस मामले में बस एक कबीर नजर आता है,जिसको हर कौम को एक जुबान से बोलता पाता हूँ।कबीर बदजुबां  हो सकता है दोजुबां नहीं।
शायद इसी सच की ताकत थी जिससे कबीर ललकार लगाया कि काशी में मरा तो स्वर्ग मिला तो क्या एहसान ,यहां तो नत्थू खैरा सबको मिलता है,कहा मग्गह में मरूँगा किसकी हैसियत जो स्वर्ग न दे। यह सच की ताकत थी,आज और प्रासंगिक हो जाता है जब बीमार पड़ते संत महंत मौलवी मौलाना एसी कमरे में बड़े खर्चीले चिकित्सकों और अस्पताल में इलाज कराते सुने जाते हैं।
बस इतना ही कहूंगा कि मानव ने जहर ही बोया है, आगे कोई ऊपर से मोहब्बत का वायरस ऐसे ही सारी दुनिया में तू फैलाना मेरे बीर कबीर,,ये नफरत अब झेली नहीं जाती।

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