मंगलवार, 6 जुलाई 2010

बंद का नाटक हो बंद

५ जुलाई २०१० गैर सत्तासीन पार्टियों द्वारा भारत बंद का वो कुंठित पर्व रहा जो आंकड़ों के मुताबिक़ देश के विकास को तेरह हजार करोड़ रूपये से पीछे कर दिया.इतना से ही पेट नहीं भरा तो बहुजन समाज पार्टी ने उसके ठीक दूसरे दिन यानि ६ जुलाई को विशाल रैली और धरना प्रदर्शन के कार्यक्रम बिभिन्न जनपदों के मुखालयों पर आयोजित करवाया और जनता को कष्ट देने की रही-सही कसर पूरी हो गयी ।
बड़ा विचित्र संयोग है जनता त्राहि-त्राहि कर रही है और इन नेताओं को बंद सूझ रहा है .क्या ये बंद कराने वालों के दिमाग में कभी ये बात घुसती है की देश में कितने ही ऐसे परिवार हैं जो रोज कूआं खोदना और रोज पानी पीना वाले जुमले को आज भी चरितार्थ करते हैं. कितने घरों में चूल्हे नहीं जले और कितने मासूमों की मुकान भूख के मारे आसुओं में तफ्दील होती रहीं.क्या जानने की भी कोशिश किया इन राजनीतिज्ञों ने की कितने रोगियों ने इलाज के अभाव में दम तोडा .एक बनावटी तर्क दिया जा सकता है कि इसीलिये तो लड़ाई लड़ी जा रही है कि और कोई गरीब भूखा न रहे तो ये महज एक राजनीतिक नाटक है जिसे आधिकारिक रूप से नहीं बलिकी मानवीय रूप से बंद किया जाना चाहिए.दासकैपिटल लिखते समय कार्ल मार्क्स कि बिटिया मर रही थी लोग जाकर बताये तो उनका जवाब था कि ठीक है मेरी बेटी मर रही है तो मर जाने दीजिये ,कम से कम कल से इस किताब के पूरी होने के बाद से किसी और मार्क्स कि बेटी गरीबी से नहीं मरेगी.कार्ल मार्क्स के भावनाओं का कद्र जरूरी है लेकिन क्या आज किसी गरीबों कि बेटियां अभावों में मरना छोड़ दी हैं ,तो नहीं ,जब कि आज के राजनेताओं का इतना स्पष्ट उद्देश्य और त्याग भी नहीं है।
गजब मजाक है केंद्र सरकार अपनी कमी को कमी मानने को तैयार नहीं है ,और ये पहला मजाकिया वाक्य दिख रहा है कि सत्तासीन लोग आन्दोलन और बंद करा रहे हैं,सिर्फ और सिर्फ जनता को गुमराह करने के लिए.अगर भारतीय जनता पार्टी विरोध करे तो बात समझ में आती है ,समाजवादी पार्टी विरोध करे बात समझ में आती है लेकीन बहुजन समाज पार्टी जिसकी सरकार है वो केंद्र के खिलाफ लगी हुई है और केंद्र सरकार याकि कांग्रेस बसपा के खिलाफ आन्दोलन करके जनता को किस असमंजस के चौराहे पर खड़ा करना चाहते हैं.बसपा कि इतनी ही औकात थी तो क्यों नहीं ५ जुलाई के भारत बंद में बाकि के संगठनों के साथ भाग लिया।
इतना ही नहीं इन बंदियों में भी अस्तित्व कि लड़ाई थी सारे लोग अलग-अलग अंदाज में विरोध कर रहे थे भले ही खेमा एक क्यों न हो.जब देश हित में बड़ा विरोध करना होता है तो पार्टी के अस्तित्व के खतरे से उपरकि सोंच रख कर लद्फ़ाइयन लादेन जाती है ,जनता पार्टी इसकी सबूत है।
अतः राष्ट्रहित में लोकहित में ,मानवहित में ऐसे हड़ताल और बंद का सबसे पहले विरोध इन राजनेताओं को करना चाहिए।

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