आजादी के बाद देश की बागडोर कांग्रस के हाथों में सबसे ज्यादा दिन तक रही ,लिहाजा जनता यह भी नहीं आकलन कर पाती की उसने देश हित में क्या-गलत किया ,क्या सही किया। कारण करना सब कुछ उन्ही को था । जनता गुलामी के सदमे से नयी-नयी उबरी थी और उसे गैर अंग्रेजियत की हर चीज अच्छी लगती थी चाहे वो सही हो,या गलत। इससे भी नहीं इंकार किया किया जा सकता की बहुत कुछ विकास के कार्य हुए भी,लेकिन वो अधिकतम पंडित नेहरू के कार्यकाल में,या फिर इंदिरा जी तक। लोकतांत्रिक राजघराने के ये चंद लोग मुट्ठी में संविधान और ठेले पे हिमालय को धोने लगे ,और वैसे ही उनकी नीतियां ,जो गरीबों को दिन-प्रतिदिन गरीब बनाती गयी और अमीरों को उनका खून चढ़ा-चढ़ा कर मोटा किया जाता रहा।
लेकिन आज के कांग्रेस की नीतियां तपो अब उबून हो रही हैं,जैसे लग रहा है कम,प्यूटर देश चला रहा है,कई विश्वविख्यात अर्थशास्त्री देश की स्थिति सुधारने के बहाने संगठन को सुदृढ़ बनाने में लगे हुए । नरेगा,या दुनिया भर ऐसी योजनाये जिसमे देश के विकास का पैसा तो खर्च होता ही है,ये गरीबों के नाम पर ही बनती भी हैं,पर अफ़सोस की इनसे एक तरफ गरीब जहाँ कामचोर बन खानदानी गरीब हो जाता है,वहीं इन नेताओं के चट्टे-बट्टे खा-खा कर सुगर ब्लाड्प्रेसर का इलाज करा रहे हैं फिर भी इनको होश नहीं आ रही है। गरीबों के नाम पर आने वाला पैसा अगर उन तक नहीं पहुचता है तो उसके खाने वाले बिचौलिए को कफ़न किरी करने वाले घिनौने कृत्यकारी से बेहतर नहीं समझा जा सकता। अब इन नेताओं को ही तय कर लेने दीजिये की इन्हें नेता बनाना पसंद है यां कफ़न की दलाली। बाद का काम तो उन मरे या मरने वाले लोगो की आत्माएं उनकी जीवित अस्थियाँ उकेल कर उनसे अपना हिसाब देर-सबेर पूरा कर ही लेंगी। ये हाल देश के राजनेताओं के कर्म्हीनता वजह से हुआ है,उसमे कोई दो राय नहीं ,अब तो कम से कम झोपड़ियों का झूठा दौरा करना बंद कर ,अपने किये की पछतावा कर इन लोगों को चेत लेना चाहिए ,अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब देश में सिर्फ नेता रहेंगे और मृत गरीब आत्माए,जिसकी जिसकी जिम्मेदार सरकार होगी।
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