शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

गुलामी का आनंद ,स्वतंत्रता के खतरे

आजाद भारत और गुलाम भारत के राजनैतिक परिदृश्य पर अगर एक नजर राखी जाय तो ,एक बारगी लगता है की ,समृद्धि के लिए भूखमरी सबसे कारगर यंत्र है। शोषण जितना ही भयावह होता है ,विरोध उतना ही तीक्ष्ण होता है। आज के राजनैतिक परिवेश अगर बिगड़े है तो,चिंता काविषय नहीं है,चिंता ये है की अभी भी ये सर्वनाशी सतह पर नहीं पंहुचा हुआ है। दमन संस्कारों ,सिद्धांतों और आन्दोलनों का सबसे बड़ा प्रडेता होता है। ये गुलामी का आनंद और उस आनंद से मिलने वाली ताकत ही थी जिसने स्वतंत्रता दिलाई , लेकिन क्षोभ कि कालांतर में इसके बड़े खतरे उभर के आये ।
स्वतंत्रता जीवन के अंदाज को बदल देती है। जो एक अलग संस्कृति को जन्म देती है। स्वतंत्रता का अभिमान या वैचारिक दुरपयोग बिभिन्न संस्कृतियों में सामंजस्य स्थापित नहीं होने देते ,और स्वतंत्रता सामाजिक हाजमे को ख़राब करना शुरू कर देता है। अब इस स्वतंत्रता के खतरे के रूप में हमें सामना करना पड़ता है,लिव इन रिलेशन से लेकर माँ बाप के परवरिश के लिए सर्वोच्च न्यायलय के आदेश तक के के रूप में। एक तरफ जहाँ बचपन और बुढौती कि दुश्वारियों को इस स्वतंत्रता ने बढ़ा दिया तो वहीं विवाह जैसे पवित्र संस्था को भी तलाक के मकडजाल से उलझना आम हो गया। विवाह अब मर्यादा नहीं रही। माँ बाप अब दैवीय नहीं रहे।
अगर यही स्वतंत्रता है तो हमें हमारी गुलामी वापस कर दीजिये,शहीदों को उनकी शहादत वापस कर दीजिये ,रिश्तों के साथ गुलामी मंजूर है,रिश्तों को बेच आजादी का ढोंग अब और नहीं........

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