मंगलवार, 2 नवंबर 2010

कहीं दिया जले कहीं दिल

त्यौहार रोजमर्रा की उबाईयों से बचाकर बीच-बीच में नयापन देने की एक सामाजिक विधान था। लेकिन महगाई की मार त्योहारों पर इस कदर वार करना शुरू कर दी हैं की इन की महत्ता भी घटती जा रही है। सरकारों का ध्यान सड़कों,मल्टीप्लेक्सेस पर तो है कितना जल्दी अंग्रेजियत की सम्पूर्ण खाल में ढक दिया जाय पूरे देश को लेकिन किसी गरीब के घर में दिवाली को दिया जला या नहीं इस पर भला कौन सोंचे। सरसों की तेल की कीमत अब इस कदर बढ़ चुकी है की दीयों से तेल गायब है,इतना ही नहीं अब तो मोमबत्तियां भी साथ छुड़ाने लगी है। कभी किसी एनजीओ को अख़बार वाले साथ देने के लिए तैयार हो गए तो किसी अनाथालय में दिखा दिया अपनी दरियादिली ,हो गयी गरीबो,अनाथों की रखवारी।
तो क्या इतने से ही राष्ट्र की रखवारी हो जायेगी। करोड़ों रूपये के भ्रष्टाचारी गुब्बारे दुनियां में भारत को भले ही एक मजबूत अर्थव्यवस्था वाले मुल्क के रूप में स्थापित करा दे लेकिन ओ बच्चे जो कभी अपने हाथ में खेलने वाले गुब्बारों की खुशी तक नहीं महसूस कर पाए ,उनके गुबार जब फूटेंगे तो वैचारिक बैसाखी पर चलने वाली सरकारों का क्या हश्र होगा। डॉ मनमोहन सिंह विश्व के सबसे बड़े अर्थशास्त्रियों में से एक ,उनके हाथ में सत्ता की एक मजबूत कमान। हालाँकि खुले बाजारों में सामान खरीदे शायद उन्हें तीस-चालीस बरस हो गए होंगे ,अगर खुद उन्हें दुकानों पर खाद्य सामग्री खरीदने भेज दिया जाय या किसी दुकान पर गरीबों की लाचारगी देखने के लिए बैठा दिया जाय तो उन्हें असली शाइनिंग इंडिया का ज्वलंत तस्बीर दिखेगा॥
पर क्या हुआ छोडिये कही दीप जले कहीं दिल की राग मल्हार को आइये मन ही ली जाय फिर से अपनों की दिवाली...................................ढेरों शुभकामनाओं के साथ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. rashtra tab badlega jab har insan khudko badlega ... ham kya kam hain ... arey kuch bhi karne se pahle ham jaati, dharm prantiyata dekhte hain ...

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    बधाई हो बंधुओं ! बधाई हो ! चलिए खुशियाँ मनाते हैं ! पार्टी करते हैं !

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  2. i m also in the favour. commet is true for current situation.goverment should have to take some decision for this.
    Happy Diwali to all of You.......

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