बिहार चुनाव का अगर ईमानदारी से आकलन किया जाय तो यह कहा जा सकता है की देश अब अपराध और धनबल के राज्ज्नैतिक मानकों से ऊपर उठ रहा है। जिसकी जगह जहाँ है वह वहां पहुचना शुरूकर दिया है। काम करने वाले और जनता के हित में सोचने वाले से जनता बहुत दिन तक दूर नहीं रह सकती। यह भी दिख ही गया। आज का बिहार पंद्रह साल पहले के बिहार से काफी अलग है। कारण की वहां काम दिख रहा है। यद्यपि अगर लालू और नितीश दोनों के राजनैतिक जन्म का जिक्र किया जाय तो दोनों ही एक खेत की पैदावार है। जेपी आन्दोलन से दोनों ही राजकार्य शुरू किये। लेकिन दोनों के रस्ते एक दम अलग। एक लोगों को बढ़ा के बढ्नाचाहता था तो दूसरा लोगों को बेच कर। जनता भी समय-समय पर बर्गालाई गयी,लेकिन अंततः कार्य और विचार की जीत हो गयी।
बिहार का बदलाव देश के लिए जहाँ एक शुभ सन्देश है वही राजनेताओं के लिए एक दिशा भी। काम करिए राज करिए । भाषण से देश नहीं चलने वाला। ऐसा नहीं है की अब वहा बदलाव नहीं होंगे कोई और लालू फिर से ढोंग रचा कर जनता को मंत्रमुग्ध कर आ सकता है ,लेकिन पुराने लालू को तो अब सन्यासी हो जाना चाहिए।
इस लिए राजनीती का एक ही फंडा,काम करो राज करो।
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