सोमवार, 29 नवंबर 2010

भारत के आर्थिक बदहाली की समीक्षा

कोई भी देश अपनी अर्थ नीतियों और अवस्थाओं के कारण ही विश्व के आर्थिक मंच पर मंचित हो पाता है। ये महज एक उदगार नहीं बल्कि वो मिथ्या सच है जो न उगला पाता है ,न ही निगला पाता है। दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की के वावजूद भिखारियों की संख्या में उत्तरोत्तर बढ़ोत्तरी हो रहीहै,रोटी के टुकड़े भी नहीं मिल पाते पेट पालने को ,करोड़ों भारतीयों को। कारण हम अत्याधुनिक विकास के साथ भिखारियों के भी संख्यात्मक विकास को नजर अंदाज करने के आदी हो गए हैं।
भारत में आर्थिक तंगहाली के सबसे बड़े कारणों में यहाँ का भ्रष्टाचार है,चाहे वो आदर्श सोसाईटी का मामला हो,या राष्ट्रमंडल खेलों का। इस देश में एक घोटाले की कलई खुल नहीं पाती है की दुसरे हाजिर,उस पर बहस शुरू। पहले वाले को यूं ही निजात मिल गया। आजादी के बाद सिर्फ घोटालों का इतिहास खंगाल दिया जाय और उसे जनता में ईमानदारी से खर्च करने की सोंच लिया जाय तो ,आज भी हम अमीरों से अमीर है।
तंगहाली का दूसरा कारण सरकारी नौकरियों में तनख्वाह में बेतहासा ब्रिधि भी गरीबी-अमीरी की खाईं को बढाया । सामान्य जनता गरीबी को धोने और रोने में मशगूल होने को मजबूर होती है। तीसरा बड़ा कारण ,दुर्घटनाओं में मुआवजा पर आज इतना लम्बा चौड़ा खर्च हो रहा है,की किसी भी देश का देश निकाला हो जाए। इसके लिए सिर्फ राजनीतिज्ञों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता,जनता भी उतनी ही जिम्मेदार है। उसे सोचना चाहिए की ये आपका ही पैसा आपको एहसान तौर पर दिया जा रहा है,और अपने भी लूटा जा रहा है । इन तीन मामलो पर सकारात्मक बदलाव फिर से देश को सोने की चिड़िया बना सकते है,सिर्फ बहेलियों से बचाना है।

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