भारत जैसे विशाल देश में रोज ही कहीं न कहीं चुनावी समारोह चला करते हैं । नौजवानों की इन राजनीतिक परिदृश्यों में भूमिका को किसी के बस की बात तो नहीं की इंकार कर सके या यहाँ तक की उन्हें नजर अंदाज कर सके,लेकिन सच ये है कि उनके प्रति किसी के भी इरादे सकारात्मक नहीं हैं,और शायद काभी नहीं रहे हैं। आन्दोलनों का इतिहास उठा कर अगर देखा जाय तो जेपी आन्दोलन से लेकर तमाम बदलावकारी रणनीति युवा सोंच और ताकत से ही मिली। लेकिन क्षोभ कि कालांतर में उन्हें फिर पतली गली दिखा दिया जाता है।
आज देश में युवाओं को साथ जोड़ने का जिम्मा चालीस वर्षीय राहुल गाँधी लेलिये हैं। जिन्होंने आन्दोलन तो शायद कभी देखा भी नहीं होगा । आज देश का एक खाशा पढ़ा लिखा युवा जो सामाजिक सरोकारों से जुदा है जुड़ना चाहता है,जीवन के ऐसे दो राहों पर खड़ा है,कि जाय तो जाय कहाँ ? क्या उन तक राहुल जी का नयनाभिराम हो प् रहा है,तो कत्तई नहीं ,अरे ऐसी जगह तो सच्चाई है कि सुध्धोधन टाईप में संगठन के पुराने लोग उन्हें भेजने से कतराते हैं कि कही इनका दिमाग न बदल जाय और किसी और कुशुनगर कि तलाश में न निकल पड़ें। लेकिन एक बात तो समझना चाहिए कि राहुल जी अप चालीस वर्ष के हो गए अब बच्चे नहीं रहे अपनी सोच होनी चाहिए ,क्या संगठन में किसी तरह से युवाओं कि बराबर कि भागीदारी लग रही है आपको,या आप भी सिर्फ लालीपॉप ही पकड़ा रहे है,इन लोगों को। सरपट यात्रा करने से ही देश का कल्याण नहीं होने वाला है। रोज घोटाले घोटने वालों का जन्म हो रहा है,और आप अपनी विजयगाथा गाने में मशगूल है। बदलाव अपने आप होता है, जिसका फायदा आपको मिल रहा है,इस भ्रम में रहने की जरूरत नहीं कि यह आपके सरपट यात्राओं का फल है। देश जरूर आपकी कद्र कर रहा है,लेकिन आपको भी समझना चाहिए कि जीतीं प्रसाद,ज्योतिरादित्य,और सचिंपाय्लत तथा उम्र के अलावा भी नौजवान यहाँ है,जो हर मामले में उनसे योग्य है,सिर्फ जन्म से मिली सोने के कटोरी उनके पास नहीं है। जब तक इनको साथ नहीं लेंगे ,आप साकार बना सकते है,लेकिन नेता नहीं हो सकते। इन्सान बनिए और इन्सान बनाईये।
जाय हिंद
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