मंगलवार, 15 मार्च 2011

बटवारे की नीति पर फिर चले देश के राजनेता

आजादी के बाद भारत जैसे गरिमा माय देश की धज्जियाँ कितनी उखड़ी इसका जिक्र करने में शर्म आता है। आजादी के पहले देश में जो भी विकास हुए उसका कारण उस समय तक देश की राजनीती संघर्ष की नीव पर खड़ी थी जबकी आजादी के बाद राजनीती आय के प्रबल श्रोत के रूप में उपयोग की विषयवस्तु बन गया। देश के बटवारे के नाम पर युवा पीढ़ी गाँधी को बदनाम करती है सिर्फ और सिर्फ सुने -सुनाये लतीफों के कारण,क्योंकि पढने-लिखने से भी विश्वास उठा है। निश्चय ही गाँधी मोहम्मद अली जिन्ना के सबसे करीबीयों में थे। लेकिन जब बटवारे की बात आई तो जिन्ना कहे की मैं मुस्लिम सम्प्रदाय का इकलौता नेता हूँ और अंतिम प्रवक्ता भी,आप यानि गाँधी कोसंबोधित कर जिन्ना कहे की आप हिन्दुओं के नेता बन जाइए क्योंकि आपके यहाँ भीड़ है आपको अंतिम प्रवक्ता हिन्दू खेमे का नहीं कहा जा सकता है। इसपर झल्लाए गाँधी ने कहा की हिन्दुस्तानी से छोटी किसी भी पहचान पर मैं बात करने के लिए तैयार नहीं हूँ । और शायद गाँधी की उस जिन्ना से ये अंतिम मुलाकात थी जिसके बुलावे पर वो नंगे पाँव दौड़े चले जाते थे। फिर भी हम गाँधी को दोषी ठहराते है बटवारे के लिए।
लेकिन आज देश में तमाम राजनेता बटवारे को ही अपना मुद्दा बना सर ऊचा किये चल रहे हैं। पीए संगमा जैसा कुशल राजनेता भी सरेआम कहता है की यूपी जैसे राज्य में विकास के लिए चार प्रदेश बनाने चाहिए। मुझे समझ में नहीं अत की क्यों लोग पुनः गुलामी की तरफ बढ़ना चाहते हैं। विदेशी अंग्रेजों से तो हम जीत गए लेकिन जब तक ये देशी अंग्रेज अपनी भाषा नहीं सुधारेंगे तब तक कुछ भी नहीं होने वाला हैं। ऐसे लोगों पर राष्ट्रद्रोह लगना चाहिए। ये राष्ट्र और राष्ट्रीय भावना दोनों पर सीधा और घटिया प्रहार है।

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