मंगलवार, 5 मार्च 2013

एक नदी की हत्या का जुर्म सरकार पर
असि एक नदी है इसको मनवाने में डेढ़ बरस लग गये। पता नहीं किसने माना किसने नही । शुक्र है की वाराणसी शहर के नाम से असि जुडी हुई है अथवा ,,,। सरकार भी मान गयी की यह नदी रही और इसके साथ अत्याचार हुआ है फलतः इसके उद्धार के लिए निश्चित कदम उठाए जायेंगे । सरकारे हर सामाजिक कार्य हेतु पैसा जारी करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है ,अतः इसके उद्धार के लिए भी ८ करोड़ ९ लाख रूपये पास कर चुप्पी साध ली गयि। अख़बारों में बड़ी खबर आयी की असि फिर से होगी जीवित । तीन चार दिन पैमाइस भी हुआ ,लगा सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है अब इस नदी को इसकी अस्मिता मिल ही जाएगी । अचानक पता नहीं क्या बिगडा ,पैमाइस कार्य बंद हुआ ,किसके आदेश से शुरू हुआ था ,और किसके आदेश से बंद हुआ भगवान् ही जाने । अचानक कुछ दिन बाद बड़ी बड़ी पाइप दाल इसे पाटने का काम शुरू हो गया । अधिकारीयों ने ये जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा की जनता को क्या जवाब देंगे जब वो पूछेगी की अभी तो आप इसे पुनर्जीवित कर रहे थे आज अचानक इसे मुर्दा करने पर क्यों तुले हुए हैं । गंगा प्रदूषण की इकाई को ये काम मिला हुआ है ,अब तक तो नदी पट चुकी होती लेकिन अपनी हैसियत पर ला दी है पाटने वालों को आये दिन एक नयी मुसीबत झेल आज तक एक भी पाइप पड़  नहीं पायी है । कारन सारे पापों का नाश करने  वाली  इस नदी  को ही लोगों ने नाश करने की  ली है । क्षमा कीजियेगा कभी कभी तो अफ़सोस होता है की मैं इस नदी को बचा तो नहीं पाया लेकिन हाँ इसके अस्तित्व तक का नाश कराने में मेरी भूमिका जरूर है । लेकिन एक बात स्पष्ट रूप से कह देना जरुरी है की एक पौराणिक नदी की हत्या के जूर्म से सरकार अपने को कभी उबार नहीं पाएगी ,इसका बुरा करने वालों का नाश होना तय है । मामला उच्च न्यायलय में है देखिये क्या होता है ,,,,सर्कार ३० २ झेलती है या ३०७ ,,,,,झेलना तो है ,,,,,,

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