गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

सरकारी लूट और निठल्लेपन के बढ़ते खतरे

किसी भी देश में भ्रष्टाचार की हदें तब पार कर जाती है,जब नीचे से ऊपर तक इसके फंदे बिछे हुए होते हैं। किसको सही कहें और विश्वास का स्वास भरें समझना कठिन है। चाँद पैसे की खातिर गलत करना तक ही यहाँ गलत नहीं रह गया है,सरकारी महकमों से जुड़े लोग कुछ भी करना चाहते ही नहीं,उनका सारा समय एफडी और वित्तीय सुविधाओं की जानकारी करने में लग जाता है,कारण उनको इतना अधिक पैसा मिलने लगा है।
अभी एड्स दिवस पर कई बड़े डॉक्टरों की कलई खुली,जो कैसा व्यवहार करते है,वो अपने रोगियों के साथ ,जिनकी सेवा की रोटी खाते हैं वो। सर सुन्दर लाल अस्पताल बीएचयू जिसके विषय में अखबार वाले भी छपने से कतराते हैं की स्थिति ये है की वहां पहुचने वाले रोगियों के साथ ये डाक्टर साहब लोग ऐसा व्यवहार करते है,मानो ये किसी दुसरे गृह से आये हों। सब तो सब जो रेसिडेंट अभी पीजी का छात्र होता है,और ट्रेनिंग के लिए रेजिडेंट डाक्टर के रूप में कार्यरत होता है,उसकी गति यह है की किसी बुजुर्ग को भी आप नहीं कह सकता तुम तो मानो उनकी छठी में दाल दिया गया हो। ये है सरकारी छुआछूत का ऐठन।
ऐसे में सबसे पहले जरूरी है की ,बढाई हुई छठां वेतन की तनख्वाह वापस करना तो हवा-हवाई हो जाएगा लेकिन कषम खा लेना की इनको अगले पच्चीस सालों तक अब इसी वेतन पर काम करना है,नीचे से ऊपर तक सारे महकमों के सारे कर्मचारियों के साथ। उसके बाद बदली तस्बीर सामने होगी,इनकी औकात की थाली में,क्योंकि सरकारी नौकरों का मन का बढ़ना लोकशाही का बढ़ना है,जो कभी सत्य का नुमैन्दगार नहीं हो सकता। इनके खिलाफ भी सड़कों पर देर सबेर उतरना ही होगा,तभी सच्चा भारत दिखेगा।

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