शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

असि नदी के पुनर्जीवन हेतु प्रशासन ने उठाया कदम 

काशी का वाराणसी नाम जिस वरूना और असि नदी के नाम पर सृजित हुआ है ,आज वो दोनों ही नदिया अतिक्रमण और प्रशासनिक लापरवाही की   भेंट चढ चुकी है ।जि स में असि तो लुप्त प्राय हो गयी है।जब हम लोगों ने इस पर काम करना शुरू किया था तो महीनो बीत गए लोगों को विश्वास दिलाने में की यही वो नदी है जिसने इस शहर को वाराणसी नाम दिया है।प्रशासन के भी हाथ पाँव फूलने लगे थे ,कारन नदी का रास्ता तक प्रशासनिक अनदेखी और व्यक्तिगत स्वार्थों में निगल लिया गया है।कई लोगों ऐतराज भी जताया ,एक साथी ने तो इसे अंगरेजी का जुमला बाचते हुए ,वाइल्ड गूज चेज ,,,भी कहा।लेकिन जब भी उस नदी की तरफ निगाहे जाती ,मन खुद को कोसने लगता था ,,साथियों की मेहनत्त और मनोंनत किये रहना अब रंग लाया।लेकिन सर्कार 8.80 करोड़ सिर्फ असि के नाम पर देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री  नहीं कर सकती ।डर भी है की जनता विरोध करेगी और गंगा की तर्ज पर वे फिर वापस चले जायेंगे।
एक सवाल यहाँ उठता है की जब भी नदियों के उद्धार या सुधार  की बात होती है तो करोड़ों में पैसा आता है ,और किसी की कोठी तनती है किसी के कार के काफिले बढ़ जाते हैं लेकिन नदी वैसी की वैसी ही रह जाती है ।एक मित्र ने  कमेन्ट किया देखते रहिये ये आठ नौ करोड़ भी हजम कर जायेंगे लोकशाह और उनके चट्टे  बट्टे।मैंने उन्हें जवाब देकर तो संतोष पा लिया की,, अगर ये गलती वो लोग असि के सन्दर्भ में करते हैं तू इस बार उनका हाजमा भी खराब होगा मित्रवर ,,,लेकिन मैं अपनी जुबान रख पाऊं उसमे आप सभी खास कर काशी वासियों का सहयोग अति महत्वपूर्ण है, आवेदित है , जिससे किसी कुर्सी पकड़ का कोलेस्ट्राल इस पवित्र नदी के धन से न बढ़ने पाए।
आशा ही नहीं विश्वास है की आप सबका शुभ आशीष मिलेगा ,,,,,, 

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