चाय की महानता .............
इस देश में चाय की भी अपनी एक संस्कृति है जिसकी अनगिनत महान उपलब्धियां है।ऐसे में जब हम बनारस शहर के होते हैं तो बनारसी संस्कृति में चाय का तड़का क्या अमेरिका क्या जापान सबको अपने में समेट लेता है ।यहाँ चाय दुकानों जिस पर देश विदेश के मुद्दों पर चर्चाएँ होती हैं,वो अगर शहर के एक छोर से शुरू की जाय तो महामना की तपोस्थली द्वार स्थित टंडन टी स्टाल से शुरू होती है जो कभी समाजवादी नेताओं की सिद्धपीठ होती थी, उसके ठीक सामने अब जहाँ आज प्रेस की ईमारत खडी है मैनेजर की चाय दुकान हुआ करती थी,उसके आगे चौराहे पर फक्कड़ की चाय दुकानं और दाल में घी की तरह केशव पान ,आगे दूध और काम रोक कर चाय पिला कर लोगों की राय सुनने और अपनी कहने वाले मन्ना सरदार ,आगे बढे तो अस्सी की चाय दुकानों चाहे पप्पू हो या कोई ,ये महज चाय दुकान नहीं राष्ट्रीय मंच हैं,आगे बढिए तो इसी तर्ज पर सोनार पूरा , कमच्छा , गोदोलिया ,मैदागिन ,तेलियाबाग ,इंग्लिशियालाइन फूल मंडी के सामने ,सरीखे ऐसी कई जहाँ स्वस्थ स्वस्थ चर्चाएँ होती हैं ।लेकिन तब भी चाय की महानता के प्रति इतना गंभीर नहीं हो पाया था।
लेकिन इसी चाय दुकान की उप्लब्धि गुजरात के तिबारा चुने मुख्यमंत्री माननीय मोदी जी भी हैं। बनारस न सही गुजरात ही लेकिन चाय दुकान की उपलब्धि है।कल एक स्व वित्त पोषित नेता जी ने कहा की यार काँग्रेस गुजरात में हुई इसका नहीं ,बीजेपी आगे गयी इसका भी क्षोभ नहीं पर मोदी साहब जैसे का इतना महिमा मंडन अपच कर रहा है। दो सीनियर सिटिजन की तरफ अग्रसर की का जिक्र कर देना लाजमी होगा एक ने कहा की मोदी क आगे जाना साम्प्रदायिकता को बढ़ावा है ,तो दुसरे ने छूटते ही कहा अब साम्प्रदायिकता जैसे शब्द छोडिये नहीं तो हो इतिहास हो जायेंगे। इतिहास बिना भूगोल कैसे बनेगा ।
तब तक पीछे से एक सज्जन कलमाड़ी भी चाय काफी वाले थे ।एक और ने टांग अदाई बोले कहा इ तुलना टीक नहीं है।खैर मैं जब अहलूवालिया साहब ने चाय को राष्ट्रीय पेय बनाने की हुंकार भरी थी तो मैंने बनारस से उनका विरोध जताते हुए मठ्ठे को राष्ट्रीय पेय बनाने की गुहार की थी,पर आज लगता है चाय राष्ट्रीय नहीं तो राजनैतिक पेय घोषित हो जाना चाहिए।
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