बीएचयूं प्रशासन की हेकड़ी
युवा मन जब आंदोलित होता है तो बड़े से बड़े को बौना साबित कर देता है।कारन वह निश्छल होता है।काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव पर लगे ताले को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने जब तत्काल ख़ारिज कर छात्र संघ चुनाव शीघ्रादिशीग्र संपन्न कराने का आदेश पारित कर दिया तो भी विश्वविद्यालय प्रशासन की हेकड़ी काबिले तारीफ है ।ये लोग देश में लोकतंत्र का पाठ पढवाते है पर अपने परिसर में लोकतंत्र को पचा पा रहे हैं।कारन इन्हें भय है की इनकी लूट धराशायी होगी ।ये पकडे जायेंगे ,पकडे तो आज भी जाते हैं लेकिन छात्रों के इस सशक्त मंच के न होने से ये मुक्त ही नहीं उन्मुक्त भवरे बन धन पुष्पों पर कुंडली मार बैठे हैं।इस मदमस्त हाथी पर छात्र संघ कोचवान न बन बैठे इसका इनको भय है,और शुरू से रहा है।
कल कुछ पुराने साथियों से चर्चा हो रही थी जिसमे एक बात निकल कर आयी जिसका जिक्र कर देना उचित है ,उनका कहना था की छात्र संघो की शुचिता की भी तो कोई गारंटी नहीं है।एक समय के बाद ये मंच भी ठेके कोटे की दर्बारगिरी में लग जाता है।चुनाव लड़ने के लिए विचार नहीं तलाशे जाते धन उगाही को प्रथम अध्याय बनाया जाता है ।ऐसी बहुतायत बाते आयी,जो बहुत बेदम भी नहीं थी।मैंने कहा छात्र संघो की उपज कितनी भी गिरेगी ,महामना की फोटो देखते ही उसकी आत्मा काँप जाएगी,,पर ये उनकी छाती पर बैठ के मूंग दल रहे है।वैसे भी ये मंच कितना हु गलत होगा उसका प्रतिशत कभी सौ नहीं होगा उसी में वो तारा भी निकलेगा जो अकेले दिशा निर्धारण भी करेगा और प्रकाश पुंज भी होगा,,,,।
युवा मन जब आंदोलित होता है तो बड़े से बड़े को बौना साबित कर देता है।कारन वह निश्छल होता है।काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव पर लगे ताले को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने जब तत्काल ख़ारिज कर छात्र संघ चुनाव शीघ्रादिशीग्र संपन्न कराने का आदेश पारित कर दिया तो भी विश्वविद्यालय प्रशासन की हेकड़ी काबिले तारीफ है ।ये लोग देश में लोकतंत्र का पाठ पढवाते है पर अपने परिसर में लोकतंत्र को पचा पा रहे हैं।कारन इन्हें भय है की इनकी लूट धराशायी होगी ।ये पकडे जायेंगे ,पकडे तो आज भी जाते हैं लेकिन छात्रों के इस सशक्त मंच के न होने से ये मुक्त ही नहीं उन्मुक्त भवरे बन धन पुष्पों पर कुंडली मार बैठे हैं।इस मदमस्त हाथी पर छात्र संघ कोचवान न बन बैठे इसका इनको भय है,और शुरू से रहा है।
कल कुछ पुराने साथियों से चर्चा हो रही थी जिसमे एक बात निकल कर आयी जिसका जिक्र कर देना उचित है ,उनका कहना था की छात्र संघो की शुचिता की भी तो कोई गारंटी नहीं है।एक समय के बाद ये मंच भी ठेके कोटे की दर्बारगिरी में लग जाता है।चुनाव लड़ने के लिए विचार नहीं तलाशे जाते धन उगाही को प्रथम अध्याय बनाया जाता है ।ऐसी बहुतायत बाते आयी,जो बहुत बेदम भी नहीं थी।मैंने कहा छात्र संघो की उपज कितनी भी गिरेगी ,महामना की फोटो देखते ही उसकी आत्मा काँप जाएगी,,पर ये उनकी छाती पर बैठ के मूंग दल रहे है।वैसे भी ये मंच कितना हु गलत होगा उसका प्रतिशत कभी सौ नहीं होगा उसी में वो तारा भी निकलेगा जो अकेले दिशा निर्धारण भी करेगा और प्रकाश पुंज भी होगा,,,,।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें