क्या अमीरी रेखा भी कभी तय होगी
भारत जैसे स्वचालित राष्ट्र में गरीबों के लिए तो आये दिन हदें तय की जाती हैं,लेकिन क्या अमीरी की भी कोई रेखा तय करने की जरुरत नहीं समझी जानी चाहिए।गरीब कितने में खा सकता है कितने में सो सकता है कितने में उसके बच्चों की परवरिश हो सकती है ये सारी हदें तो तय की जाती हैं लेकिन क्या रातो रात महलों में तफ्बील हो रही झोपड़ियों की कोई सीमा बद्धिता होगी।सच तो यह है की गरीबी रेखा नहीं देश में अमीरी रेखा की जरुरत पर बहसेआम होनी चाहिए।
एक ग्राम प्रधान जब चुनाव लड़ता है तब की उसकी आर्थिक स्थिति और जीतने के बाद पर भी चर्चा जरुरी है ,ये पद जैसे जैसे ऊपर बढ़ता है ,आर्थिक विकास उतना ही उन्नति शील होता है।साइकिल मोटर साइकिल की जगह स्कोर्पियो ले लेती है।समाजसेवा और राजनीती को अनमोल रोजगार समझा जाना कत्तई गलत नहीं है।अम्बानी के पास कितना रहेगा ,ये भी तय होगा
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