सोमवार, 10 दिसंबर 2012

एक मित्र जो पान  के शौक़ीन आदमी हैं एक दिन कहे ये पान की दुकाने रामायण के चरित्र कालनेमी की तरह लगती है,इतना ही नहीं कुछ मशहूर पान दुकानों के नाम के आगे काल्नेमी जोड़ के वो बोल रहे थे बड़ा सटीक सुनने  में लग रहा था ,फिर भी मुझे उनकी बात हजम नहीं हुई तो मैंने पूछा की वो तो ठीक है लेकिन कालनेमी अच्छे चरित्र के रूप में तो देखे नहीं जाते तो आपने इन लोगो को ये संज्ञा क्यों दी ? इसके पीछे भी उनका बड़ा प्यारा और निर्दोष तरह का जवाब था कि देखिये  जब हनुमान जी संजीवनी लाने  की जल्दीबाजी में थे और सुशेन वैद्य ने इसके लिए निर्धारित अवधी तय की थी तो काल्नेमी ने उन्हें रस्ते में डिस्टर्ब करने की कोशिश की थी जिससे वो सही समय पर न पहुच पाए,अब तो अगर आप पान न भी खाते होंगे तो जान गए होंगे की क्यों पान  दुकानदारों  को काल्नेमी की संज्ञा दी महोदय ने ।
  वो बात अलग है की आज काल्नेमियों की अलग अलग वरायटी हाजिर है आपकी सेवा में , पान वाले और  दुकान वाले क्या खाक कल्नेमीहोंगे असल काल्नेमी तो बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं में अप्सराओं के साथ आराम फरमा  रहे है और दहाड़े मार रहे है की ,,,दम  है तो बढ़ आगे,,,

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