गुरुवार, 6 मई 2010

मीडिया का लोकतान्त्रिक चरित्र

किसी भी देश के मीडिया की पारदर्शिता उस देश की पहचान होती है.लेकिन जब हम भारतीय मीडिया की बात करते हैं तो चीजें कुछ अजीब सी उलझी हुई नजर आती हैं .आजादी की लडाई का अगर हम जिक्र करें तो वहाँ मीडिया का सकारात्मक पहलू समझ में आता है.मीडिया ही है जो इतिहास को प्रतिनिधित्व प्रदान करती है।
लेकिन आज मीडिया ने समाज के सकारात्मक पक्ष को तवज्जो देना कुछ कम सा कर दिया है ये एक बड़ा खतरा है.या इसे हम दूसरे शब्दों में ये भी कह सकते है की आज समाज में विघटनकारी कार्य या कारक इतने अधिक से हो गए हैं की अच्छे कार्यों को अखबारी कलम जगह ही नहीं दे पाते।
अब ऐसी दशा में जो भी चर्चित होने की अभिलाषा रखते हैं वो कुख्यात होने की तरफ ज्यादा अग्रसारित होना चाहता है क्योंकि वहां कम से कम छपने की स्वतंत्रता तो है.इससे भले लोग अपने भलाई पे तरस खा दूसरों की बुराइयों के बड़प्पन को मजबूरी बना लेते है जो समाज के लिए एक बड़ा खतरा है .अतः अपराधियों का इस कदर महिमा मंडन कत्तई उचित नहीं है अच्छे कार्यों की भी बड़ाई और सहकार जरूरी है जिससे बुराई का स्वतः प्रतिकार संभव हो सके.

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