बुधवार, 19 मई 2010

देश,सन्देश और दंतेवाडा

फिर नक्सलियों ने छत्तीस लोगों के खून से तिलक लगाया और सरकारें तमाशा देखती रहीं.आखिर कब तक होता रहेगा ये खूनी खेल देश की निर्दोष जनता के साथ .अभी कुछ दिन पहले एक अपराधी को पेशी में ले जाते समय उसके लोगों ने दो सिपाहियों की सरेआम हत्या कर दी.और सारे अपराधी भाग निकले .अब क्या था पुलिस महकमे में मचा हडकंप और पंद्रह दिन के अन्दर उन सारे अपराधियों को मार गिराया गया.ये वाकया यूंपी पुलिस का है जिसे सबसे निकम्मा माना जाता है.तो फिर जाहिर है कि राजनैतिक अनदेखी से ये फोड़ा नासूर बन रहा है ,और देश के कुर्ताधारी सन्देश यात्रा कर रहे हैं.इतनी बड़ी सभा हुई इतने सारे लोग जुटे लेकिन सबके जुबान पे स्वार्थ का कोढ़ी टला लटका हुआ था और किसी एक ने इस घटना का जिक्र करना भी जरूरी नहीं समझा.अरे अगर डरते भी हैं ये लोग खुद की जिन्दगी से तो चक्रव्यूह से कम तो इन लोगों की सुरक्षा व्यवस्था है नहीं ,वो कर क्या लेंगे ,या फिर अगर इतना ही डर है तो सिर्फ फर्जी डींगे हाक कर कैसे युवराज स्वीकार होंगे भाई।
दंतेवाडा ही नहीं कई ऐसे अकह्य दंतेवाडा फल फूल रहे हैं जिस पर सरकारों की हिम्मत नहीं की चर्चा कर सकें.देश पानी ,बिजली की तो छोड़े रोजमर्रा की रोटी को जूझ रहा है और सन्देश यात्राओं में दुशाला पहनाया जा रहा है.बरेली में सोनिया जी के आवास में वातानुकूलित व्यवस्था नहीं हो पाई तो पूरा देश जान गया और कितनी झोपड़ियाँ जो कभी रोशन ही नहीं हुई उनका क्या कहा जाय.बनारस में प्रदेश के सांस्कृतिक मंत्री सुभास पाण्डेय के कमरे में विजली क्या चली गयी अधिकारियों की ऐसी की तैसी हो गयी ,जब की आम आदमी तो इन्हें अपना भाग्य बना लिया है ।
ऐसे में क्या किसी गरीब की झोपड़ी में भोजन का लेने से गरीबी का अंदाजा लग जायेगा ,तो कत्तई नहीं ,अरे ये तो हमारे संस्कार में है की मेहमानों को हम अच्छा खिलाते हैं ,अन्यथा बासी रोटी और बासी साग मिलने पर गरीब झोपड़ियों का नाटकीय दौरा भी बंद हो जायेगा.

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