मंगलवार, 25 मई 2010

फिर संजने लगीं सडकों पर शिक्षा की दुकानें

हमारे देश में शिक्षा भी सब्जिओं की तरह मौसमी अंदाज में बिका करती हैं.जैसे मार्च,अप्रैल परीक्षा का मौसम ,मई ,जून प्रवेश-परीक्षाओं का मौसम ,जुलाई और अगस्त थक हार के कहीं कहीं प्रवेश ले लेना।लेकिन अब भारत में ये मौसम भी बेमौसम होते जा रहे हैं.जैसे ही माध्यमिक शिक्षा-परिषदों का परिणाम घोषित होता है सडकों पर तरह-तरह के लोक लुभावने अंदाज में अलग -अलग छूट,और सुख सुविधाओं का व्योरा हाथ में लिए विभिन्न संस्थाओं के नुमाइंदे डोर टू डोर सेवा उपलब्ध करने के होड़ में शामिल हो जाते हैं.यदि किसी तरह से आप इनके चपेट में आ ही गए तो इतनी जमकर कौन्सिलिंग कर देंगे की आपको अपने विश्वास पर अविस्वाश हो जायेगा और तीर -धनुष रख देंगे।
ये तो रहा इनका पहला अंदाज.अब किसी तरह से अगर आप इनके तथाकथित कालेज या इंस्टिट्यूट में पहुँच गए तो फिर क्या उनको मुह मागी मुराद मिल गयी .झकाझक वातानूकूलित व्यवस्था में रिसेप्सन काउंटर पर बैठी कौन्सेलर बालाएं जिस मोहक अंदाज में आपको सारे डिटेल्स बतायेंगी कि विश्वामित्र का झक टूट गया तो आप में क्या खाक रखा है.और कुछ भी हो अब पढेंगे यहीं के वायदे के साथ अगले दिन हारे सिपाही को तरह आप उस संस्था से अनुबंधित हो जाते हैं ।
अब क्या जनाब ,अब आपका प्रवेश हो गया आपके भाग्य की इतिश्री हो गयी ,अब तक आप बोले वो सुने और अब वो बोलेंगे आप सुनेंगे .वो एसी जो देख के आप लालायित हुए थे वो तो सीजन भर के लिए भाड़े पर आया था आपको अब लगातार मौसम के हिसाब से ही रहना होगा ,क्यों कि ये मौसमी शिक्षा पद्ध्हती है ,अतः बच के रहना रे बाबा

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