मंगलवार, 11 मई 2010

आखिर सन्देश-यात्राओं से कब तक भरेगा पेट

आजादी के सातवें दशक में देश आज भी विकास के नाम पर सन्देश यात्राओं के दौर से गुजर रहा है.किसी भी देश का भविष्य कहे जाने वाला आज भारत का हर युवा या तो कहीं साइकिल चला रहा है या कहीं किसी झाडे का एक कोना पकडे अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि मजबूत करने का इसी को सबसे आसान सीढ़ी समझ रहा है।
विडंबना है देश की यह पहली सन्देश यात्रा है जिसका कोई सन्देश ही नहीं है.न ही इस यात्रा में जनता है ,यह तो सिर्फ नेताओं का या राजनैतिक लिप्सा रखने वाले लोगों को जमात है जो भी संगठित नहीं है.कांग्रेस के युवराज कहेजाने वाले राहुल गाँधी का २०१२ मिशन उनकी सांगठनिक प्रतिबध्हता को दर्शाता है ,निजता को दर्शाता है,राष्ट्र के खाते में तो कोई नीति है ही नहीं।
गजब हाल है हम कहते हैं लोकतंत्र है और अजब गजब शब्दों का इस्तेमाल आसानी से हम स्वीकार करते जा रहे हैं.और देश के युवाओं का मन सिर्फ और सिर्फ अनुशरण में लगा हुआ है.ऐसे कई जुमले जो किवास्तविकता को मजाक में तफ्दील कर देते हैं आखिर किस स्वार्थ में नहीं किया जाता इनका विरोध.कांग्रेस एक राजतन्त्र नहीं जिसका कि राजकुमार होगा,इसी तरह से पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवानी को पीएम् इन वेटिंग और पीछे जाएँ तो महात्मा गाँधी जैसे देव सरीखे पुरुष को मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी जैसे जुमलों से नवाजा जाता हैऔर देश का युवा किसी न किसी का पिछलग्गू बना हुआ है।
आखिर स्वार्थ कि इस सन्देश यात्रा से कब तक छला जायेगा देश का युवा.अतीत कि नीव पर देश का भविष्य बनाने का नारा दिया जा रहा है और दूसरी तरफ नई ईटें तपती दुपहरी में नोना पकड़ वाने को आतुर हैं.एक मकान भी बनाया जाता है तो सबसे ज्यादा उसके नीव का ख्याल रखा जाता है यहाँ तो नीव ही पुरानी बनाई जा रही हैअब आगे देखिये ये ताजमहल कितना मुस्तकिल होता है.कहने को युवा शक्ति राष्ट्र शक्ति होती है लेकिन जब जब बूढ़े कमजोर होते है जैसे ही इन्हें राजनीतिक मजबूती हाशिल होती ये युवाओं को कोई न कोई लाली पाप पकड़ा ही दिया करते हैं और फिर हम धरासायी होते है,
अतः चलाओ साइकिल जब तक चला सको ,दादा चलाये ,बाप चलाये अब आप चलिए दूसरे को सांसद विधायक बनाने को और खुद पसीना पोछते रहिये.कल्याण हो ही जायेगा.

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