रविवार, 20 जनवरी 2013

काशी त्याग ,सहयोग ,समर्पण ,विचार ,अध्यात्म ,कला ,संस्कृति और सभ्यताओं के अप्रतिम सम्मिश्रण से बना एक एक अद्भुत जीवंत शहर है।तुलसी ,कबीर ,बुद्ध ,रविदास,कीनाराम  जैसे महान संतों की तपस्थली और कर्मस्थली रही है।वहीं महामना जैसा महान व्यक्तित्व तो लालबहादुर जैसा सादगी का साधक भी यहाँ उपजा।फक्कड़ों के इस निराले शहर का अंदाज  भी फक्काडाना  है।इन सबके क्रित्रित्व को आगे बढाते हुए आज की पीढी भी सेवा लकीरें खीचने में कत्तई पीछे नहीं है।
महाकालेश्वर के इस धाम रुपी  शहर में पिछले दिसंबर माह (9 दिसंबर 2012)से वहां दूर दराज से आ रहे शव यात्रिओं ,और घाट के खानाबदोस घुमक्कड़ों के लिए प्रसाद स्वरुप भोजन की अनवरत व्यवस्था चल रही है।महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का 150 वा जयंती वर्ष पूरे देश में मनाया जा रहा है ,उसी महामना के एक मानस पुत्र पंडित रमेश उपाध्याय ने महामना के जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में  इस महान कार्य का वीणा उठाया है।बड़ी मजे की बात की इस शहर में ऐसे बहुतायत भोज बहुतायत जगहों पर पूजीपतियों द्वारा चलते हैं ,लेकिन ये भोज किसी पूजीपति द्वारा नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ सेवाभाव की ताकत ,महाकालेश्वर के प्रति समर्पण और बाबा विश्वनाथ के आशीर्वाद से चल रहा है।इस लिए इसका जिक्र करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।पेशे से वकील ,एक हाथ में छडी लिए सामान्य कद काठी के इस व्यक्तित्व के विषय में एक साथी ने इसी भोज के सन्दर्भ में बताया की आज जब मैं मर्न्कर्निका पर पंहुचा तो देखा की रमेश उपाध्याय जी खुद एक झोरे में पत्तल लेके दुसरे हाथ में छडी लिए सीढिय चढ़ रहे थे ,इसलिए और महत्वपूर्ण होजाता है ये जिक्र की लम्बी गाड़ियों के काफिले से नहीं आती इस भोज में बन्ने वाली तरकारियाँ।
ऐसे पुन्य काजी लोगों से ही सजा और बचा है ये शहर ,निश्चित रूप से सब कुछ बाबा का ,और बाबा  से,,,,

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