सोमवार, 7 जनवरी 2013

प्रशासनिक नाटक ,,,,,,
एक दिन पहले वाराणसी के  वरुना नदी के पास से गुजर रहा था, नदी की तरफ किसी का भी ध्यान खिंच जायेगा कारन शायद इतनी दुर्गन्धयुक्त और गन्दगी से पटी वरुणा कभी भी नहीं रही होगी यहाँ तक की एक साल पहले भी ।अभी कुछ दिन पहले वरुना के लिए कुछ लोग संघर्षरत थे प्रशासन झुका भी ,उच्च न्यायलय का आदेश आया ,लगा मानो रातोरात प्रशसन वरुणा के पानी को पेयजल सरीखा बना देगा ।लोग खुश।और शासन प्रशासन पहले से भी ज्यादा लचर हो गया मानो  मुंह चिढ़ा  रहा हो की करो आन्दोलन धरना प्रदर्शन देखता हु क्या उखाड़ ,बिगाड़ लेते हो।
अभी कुछ दिन पहले असि नदी के सवाल पर हम लोग एक पत्रकार वार्ता कर रहे थे तो एक पत्रकार महोदय ने शहर के एक बड़े नेता का खुल्लमखुल्ला नाम लेते हुए कहा की चाहे जब ही वो आ जाते हैं कहते है अब फिर वरुणा पर कुछ छापा लोग ,हम कुछ कयल चाहत हई ।हो सकता है पत्रकार महोदय यही साबित करना चाह रहे हो कि  उनके उनसे बड़े दोस्ताना सम्बन्ध हैं। कहीं न कहीं इन लोगों के नाटक प्रशासनिक लोगों को नाटकीय तो  बना  ही दे रहे हैं।
अभी असि नदी के उद्धार के लिए शासन ने 8.8 करोड़ रुपया पास किया बकौल अखबार ।कुछ दिन नौटंकी भी चली नाप नापी भी हुआ ,अब सब ठंढा हो चले हैं।हां एक विकास हुआ है जो असि नदी के किनारे नीव पडी थी नाजायज नीवें  दीवार का स्वरुप ले रही है ।प्रशासन हर तरफ मुह चिढ़ा तमाशा देखने का काम कर रहा है।लेकिन ये इनका भ्रम और सिर्फ भ्रम है इनका जनता की भावनाओं की बरगलाने का मिथ्या प्रयास सफल कत्तई नहीं होने दिया जाएगा,इन्तजार है इनके अगले कदम का,,,,,,

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