चुप्पी तोडनी होगी
महिला सदैव से सम्मानित थी ,है और रहेगी।यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ,,,न कल गलत था न आज गलत है और न कभी गलत होगा ।समय के साथ हुए हर तरह के बदलावों के बाद भी नारी समाज के केन्द्रीय भूमिका में रही है ,आज भी है और कल भी तयशुदा रहेगी।अगर मुह न नोचा जाय तो यह कहना कत्तई गलत नहीं होगा कि अगर उसे परदे में रखने की व्यस्था भी थी तो वो शोषण नहीं था बल्कि वो समाज के लिए परिवार के लिए और देश दुनिया के लिए इतनी महत्वपूर्ण थी कि उसे हिफाजत ,सुरक्षा ,सम्मान ,पूजा ,आस्था की दृष्टि से परदे में रखा गया कारण हम आज भी बेशकीमती सजीव और निर्जीव दोनों को छुपा कर रखते हैं जिससे दुनिया की बद हवाओं से उसका पाला न पड़े।कोई भी आकृति जब सटीक रूप नहीं ले पाती तो उसमे विकृति आती ,फलतः पर्दा प्रथा के दोष भी सामने आये।
आज हर जगह नारी समाज ,नारी समुदाय संबोधन देकर इसे छल कर दूसरा समाज देने का मिथ्या प्रयास चल रहा है ,क्या हमारी नारियां (माँ ,बहन ,बेटी )आज मेरे समाज की भी नहीं रही।ये कहना कत्तई गलत नहीं होगा की वेद काल के विषय में एक श्लोक पढ़ा था ,पुर्काल्पेशु नारीनाम मन्दिरा वंदना निश्चिताः ,उपनयनानाम संस्कारानाम ,,,,,,,जब महिला जनेऊ भी धारण करती थी ,मई इसे धर्म और जाती विशेष से जोड़ कर नहीं देख और कह रहा बल्कि ऐसे विकास उस समय के हर धर्म और समाज में रहे होंगे ,,,,के बाद सर्वाधिक अग्रणी भूमिका में महिला आज है ,कदम से कदम मिला कर मात दे रही है ।ऐसे में उसे एक अलग समाज के नजरिये से प्रस्तुत करना महापाप सरीखा वैचारिक टूट पैदा करना है।माँ अगर अपने बच्चों के लिए धुंए में आँख फोड़ खाना पकाती है ,खली पेट सो जाती है ,तो ये सिर्फ और सिर्फ उसका त्याग और बच्चों के प्रति प्रेम है ,इसे कलुषित मानसिकता के लोग अगर शोषण नाम दे ,माँ खुद मुंह नोच लेगी।
दिल्ली की दुर्दांत घटना के बाद मानों ऐसी घटनाओं की जाल बिछ गयी पूरे देश में ,मिडिया के लोग भी कैमरे लिए घूम रहे हैं खाली उसी के तलाश में ,कोई भी मुह खोलने से कतरा रहां हैं ।मैं स्पष्ट कर दूं की किसी बाबा की न किसी खादी की बचाव कर रहा हूँ बल्कि आप सबसे हाथ जोड़ रहा हूँ कि अब बस , कितना भावुक करोगे उस कष्टमय परिवार को ।धैर्य का बाँध तब और भी टूट जाता है जब जिन लोगों ने महिलाओं को हमेशा उपयोग की विषयवस्तु समझने की भूल की है वो ही आज उनके साथ फिर धूर्तता कर उनकी सहानूभूति हाशिल करना चाह रहे हैं। अतः कर बध्ध निवेदन है की अब बस ,तोडना बंद ,जोडीये ,गयी हुई सामाजिक संवेदना को जीवित कीजिये ,नैतिक मूल्यों को आवाज दीजिये ,नारी के नाम पर लग से नहीं उसे खुद से जोड़ कर अपने को अपने आस पास को अपने समाज को सुधरने के प्रयास में आगे आइये ,,,,नारी उलझी तो ब्रह्माण्ड उलाझ जाएगा ,सृष्टि उलझ जायेगी ,,,।
महिला सदैव से सम्मानित थी ,है और रहेगी।यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ,,,न कल गलत था न आज गलत है और न कभी गलत होगा ।समय के साथ हुए हर तरह के बदलावों के बाद भी नारी समाज के केन्द्रीय भूमिका में रही है ,आज भी है और कल भी तयशुदा रहेगी।अगर मुह न नोचा जाय तो यह कहना कत्तई गलत नहीं होगा कि अगर उसे परदे में रखने की व्यस्था भी थी तो वो शोषण नहीं था बल्कि वो समाज के लिए परिवार के लिए और देश दुनिया के लिए इतनी महत्वपूर्ण थी कि उसे हिफाजत ,सुरक्षा ,सम्मान ,पूजा ,आस्था की दृष्टि से परदे में रखा गया कारण हम आज भी बेशकीमती सजीव और निर्जीव दोनों को छुपा कर रखते हैं जिससे दुनिया की बद हवाओं से उसका पाला न पड़े।कोई भी आकृति जब सटीक रूप नहीं ले पाती तो उसमे विकृति आती ,फलतः पर्दा प्रथा के दोष भी सामने आये।
आज हर जगह नारी समाज ,नारी समुदाय संबोधन देकर इसे छल कर दूसरा समाज देने का मिथ्या प्रयास चल रहा है ,क्या हमारी नारियां (माँ ,बहन ,बेटी )आज मेरे समाज की भी नहीं रही।ये कहना कत्तई गलत नहीं होगा की वेद काल के विषय में एक श्लोक पढ़ा था ,पुर्काल्पेशु नारीनाम मन्दिरा वंदना निश्चिताः ,उपनयनानाम संस्कारानाम ,,,,,,,जब महिला जनेऊ भी धारण करती थी ,मई इसे धर्म और जाती विशेष से जोड़ कर नहीं देख और कह रहा बल्कि ऐसे विकास उस समय के हर धर्म और समाज में रहे होंगे ,,,,के बाद सर्वाधिक अग्रणी भूमिका में महिला आज है ,कदम से कदम मिला कर मात दे रही है ।ऐसे में उसे एक अलग समाज के नजरिये से प्रस्तुत करना महापाप सरीखा वैचारिक टूट पैदा करना है।माँ अगर अपने बच्चों के लिए धुंए में आँख फोड़ खाना पकाती है ,खली पेट सो जाती है ,तो ये सिर्फ और सिर्फ उसका त्याग और बच्चों के प्रति प्रेम है ,इसे कलुषित मानसिकता के लोग अगर शोषण नाम दे ,माँ खुद मुंह नोच लेगी।
दिल्ली की दुर्दांत घटना के बाद मानों ऐसी घटनाओं की जाल बिछ गयी पूरे देश में ,मिडिया के लोग भी कैमरे लिए घूम रहे हैं खाली उसी के तलाश में ,कोई भी मुह खोलने से कतरा रहां हैं ।मैं स्पष्ट कर दूं की किसी बाबा की न किसी खादी की बचाव कर रहा हूँ बल्कि आप सबसे हाथ जोड़ रहा हूँ कि अब बस , कितना भावुक करोगे उस कष्टमय परिवार को ।धैर्य का बाँध तब और भी टूट जाता है जब जिन लोगों ने महिलाओं को हमेशा उपयोग की विषयवस्तु समझने की भूल की है वो ही आज उनके साथ फिर धूर्तता कर उनकी सहानूभूति हाशिल करना चाह रहे हैं। अतः कर बध्ध निवेदन है की अब बस ,तोडना बंद ,जोडीये ,गयी हुई सामाजिक संवेदना को जीवित कीजिये ,नैतिक मूल्यों को आवाज दीजिये ,नारी के नाम पर लग से नहीं उसे खुद से जोड़ कर अपने को अपने आस पास को अपने समाज को सुधरने के प्रयास में आगे आइये ,,,,नारी उलझी तो ब्रह्माण्ड उलाझ जाएगा ,सृष्टि उलझ जायेगी ,,,।
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