थॉमस हार्डी का चर्चित उपन्यास मेयर ऑफ़ कैस्टरब्रिज का ख्याल आया।वहां जिसे हम पाश्चात्य संस्कृति कह हमेशा अपने को सांस्कृतिक और सभ्यता के पैमाने पर बेहतर मानते हैं,उपन्यास का प्रमुख पात्र हेन्चार्ड भयानक दारूबाज रहता है इतना बड़ा कि एक बार अपनी पत्नी और बेटी को भी शराब के नशे में बेच देता है ,और बाद में जब उसे होश आता है तो पुनः वह उस बूढ़ी औरत के दारू की भठ्थी पर अपने पत्नी सुसान और बच्ची एलिजाबेथ जेन को खोजते हुए जाता है जहा उसे पता चलता है की जिस नाविक को उसने उन सबों को बेच वह उन्हें लेकर चला गया ।उस घोर पश्चाताप और तकलीफ से ग्रसित हेन्चार्ड शराब न पीने की कशम खा लेता है।उसका घास बेचने का व्यवसाय और समाज के प्रति बदली सोंच उसे उस शहर का मेयर बना देती है ।कहानी आगे भी बहुतायत मोड़ लेती है पर यही रुकने की जगह है ।आज हमारे तथाकथित सभ्यता और संस्कृति के नाम पर अपनी विश्वपटल पर पहचान जमाये इस देश में आज सत्ता की बागडोर उसी के हाथ में होती जा रही है,जो दारू का व्यवसाय करते हैं ,पीने की बात करना उनके लिए तुच्छ प्राय होगा।जो गोली और बम के सांस्कृतिक पोषक है ,या जिनकी पहचान किसी राष्ट्रीय या अन्तराष्ट्रीय माफिया से सम्बंधित होने या किसी बड़े गिरोह के ठिकाने बाज के रूप में होती है ।इतना ही नहीं वह सत्तासीन भी होता है उसकी हनक भी होती है।जब तक हेन्चार्ड की पहचान शराब से जुडी रही तब तक उसे वह जनता जनता भी नहीं मानती थी ,जैसे ही वह इससे इतिश्री लिया उसे नेतृत्व तक मिला।और यहाँ हम नेतृत्व सौपने की योग्यता इसी को मानते जा रहे हैं।
क्या हम छायाप्रति बनाने में भी गलती नहीं करते,,,,,,,,,,,,,
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