शुक्रवार, 5 मार्च 2010

संजनी हमहूँ राजकुमार

राष्ट्र के संसद में महगाई की गूज एक राजनितिक बहाना हो चला है/महगाई निर्विवाद रूप से बहुत अधिक है लेकिन क्या ये एकाएक रातोंरात बढ़ी तो कत्तई नहीं .तो आखिर क्या अब तक इसी शीर्ष महगाई का विरोध करने का इंतजार कर रहे थे ये नेतागण/विरोध का तो काम नेता प्रतिपक्ष का है ही/वो हर काम का विरोध करना धर्म समझते हैं और जनता भी उनकी बात को उतनी गंभीरता से नहीं लेती है/लेकिन कष्ट इस बात का है कि जो लोग आज विरोध जाता रहे है अगर वो पहले के सरकारों में ही ऐसा विरोध करते तो आज ये असफल विरोध का दिन नहीं देखना पड़ता /
सच तो यह है कि "सुपवा हसे तो हसे चलनियो ,जेकरे बहत्तर छेद",जो लोग खुद कभी जनता को अपना कर्तव्य नहीं समझे वो भी आज संजनी हमहू राजकुमार के तर्ज पर विरोध कर राजनीती चमकाने में लगे हुए है,लेकिन अब क्या हो सकता है अब तो बहुत देर कर चुके है ये लोग क्योंकि प्रणव दा कि पीठ भी अब तो ठोकी जा चुकी है ,बड़ा मुश्किल है लेकिन काम छ है/और नीति और नीयत से किये जाने वाले काम में सफलता खुद चलकर साथ देने उतर आती है /अतः चलते रहिये शायद कहीं शाम हो ही जाय/

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