बुधवार, 17 मार्च 2010

लोकतंत्र में छात्रसंघों की भूमिका

देश के तमाम बड़े नेता ,संगठन के पदाधिकारी,मंत्री ,सांसद छात्रसंघों की सीढ़ी लगाकर सत्ता तक पहुचे हैं चाहे वो कपिल सिब्बल हों या पी.चिदंबरम चाहे राजनाथ सिंह हों या लालू यादव ,हर तपके के बड़े लोगों का राजनीतिक प्रवेश छात्रसंघों के माध्यम से हुआ/फिर भी देश के सभी विश्वविद्यालय,महाविद्यालयों के छात्रसंघ भवनों में ताला लगे हुए है आखिर क्यों?
ये सच है की जिंदगी भर छात्र राजनीती नहीं की जा सकती लेकिन छात्रहितों को जब वही लोग नजर अंदाज करेंगे जिन्होंने यहीं से पहचान हासिल की तो यही हश्र होगा/अब बात आती है छात्रसंघ क्या और क्यों?कोई भी संगठन अपने सदस्यों की समस्याओं इत्यादि से लड़ने का एक मंच रुपी माध्यम होता है जिसका होना उतना ही जरूरी है जितना की देश के संसद का होना/आज देश में राजनीतिक अपराध बढ़ रहा है कारण छात्रसंघों का लोप/इसके माध्यम से तेज और ईमानदार युवा की राजनीती में निःस्वार्थ इंट्री होती थी जो राष्ट्र को एक नयी दिशा देता था/आज ये सांसद ,विधायक जब हासिये पर आ जाते हैं तो इन्हें छात्र संघों की यद् आती है और फिर अपनी खोई पहचान जुटाने के फेरे में नए छात्रों को राजनीतिक छलावा देकर गुमराह करते है/छात्र छात्र होता है वह किसी दल का नहीं होता है यही कारण है की जब-जब कोई लड़ाई युवाओं के हाथ में आई उसको जीत मिली क्योंकि वहां कोई लोभ और लालच नहीं होता था/
लोकतंत्र की पौधशाला है छात्रसंघ ये सभी कहते है तो उसको सुखाने पर क्यों अमादा हुए हो/सच तो यह है की छात्रसंघों से आज के नेता डरते हैं इनको अपने अस्तित्व का खतरा है/मैं छात्रसंघों का हिमायती हु काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्र राजनीती से सरोकार रहा है /आज लोग चाहे जो कह ले अगर अपवादों को छोड़ दिया तो यहाँ अपराध और बहुबल का अवसर कम है ये जरूरी है छात्रों को उनकी कक्षा का दरवाजा भी मालूम होना चाहिए /
अतः कब तक सायकिल चलाएंगे अखिलेश यादव के पीछे,कब तक राहुल गाँधी की माला जपेंगे और कब तक मायावती को नोटों की माला पहनाएंगे,अब तो चेतिए /छात्र जब विद्रोह पे उतरा तो इतिहास गवाह है इंदिरा जी जैसी कुशल प्रशाशिका को भी मुह की खानी पड़ी थी/अतः छात्रनेताओं अपने हौशले को बुलद कर आवाज उठाओ हम तुम्हारे साथ हैं/

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