बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी यानि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय देश तो क्या विदेशों में भी किसी पहचान की मोहताज नहीं है.महामना जैसे कर्मयोगी की यह तपोभूमि अपनेआप में एक सिद्दपीठ है जहाँ से हजारों हजार लोगो की आस्था ,विश्वास और भावनाएं जुडी हुई हैं।
आज विश्वविद्यालय के इंजीनीयरिंग कॉलेज को आईआईटी वाराणसी बनाने की पहल सुरजोरों पे है/मेरा मानना है कि विश्वविद्यालय के मूल चूल ढांचे में परिवर्तन कर और इसको दूसरा नाम दे ,इसके लिए अलग से गवर्निंग बॉडी नियुक्त करना जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ है जिसको जनता कभी नहीं स्विका करेगी.मै इसका विरोधी नहीं हू लेकिन तरीके का धुर विरोधी हूँ जो अपनाया जा रहा है.अलग से आईटी को फंडिंग करे सरकार,शोध कार्यों को महत्व दे लेकिन परिसर में दूसरी संस्था के नाम से इसे संचालित किया जाना एकदम सरासर गलत है/क्या मजाक है जो अच्छा लगा वो आपका बताना चाहूँगा को ये सरकारी फंड से बना विश्वविद्यालय नहीं है ,यहाँ कि जनता मालवीय जी के एक आवाहन पर भक्ति भाव से जमीन ही नहीं दी थी श्रमदान भी किया था क्या इसीलिए कि आज आईटी को आईआईटी वाराणसी बना दीजिये कल आईएम्एस को एम्स वाराणसी बना दीजिये ,परसों ऍफ़एम्एस को आईआईएम् वाराणसी बना दीजिये और फिर महामना कि प्रतिमा उखाड़ कर प्रयाग भेजवा दीजिये/मुझे समझ में नहीं आता कि विश्वविद्यालय प्रशासन इसे अपनी उपलब्धि के रूप में क्यों देख रहा है।
रही बात कैम्पस सेलेक्शन की तो कभी भी बीएचयू आईटी का प्लेसमेंट आईआई टी से कमजोर नहीं रहा है/अतः ये जनता की भावनाओं के साथ राजनैतिक छेड़छाड़ है जो की बर्दाश्त से बाहर है/
अतः गुजारिश है की इसपर पुनः विचार किया जाय अन्यथा बाबरी मस्जिद से भी बड़ा सांप्रदायिक तनाव हो सकता है जिसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी और मालवीय जी हाथ में कटोरा लिए थे विश्वविद्यालय बनाने लिए और जनता हाथ में कटोरा ले विश्वविद्यालय बचने के लिए सडकों पर उतर आएगी और हाथ मलने और पश्चाताप के अलावा कुछ भी नहीं हाशिल होगा.
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