शुक्रवार, 19 मार्च 2010

एक महापुरुष का जीता-जागता सपना काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

धर्म और संस्कृति का नाम लेते ही मन मस्तिस्क पर खुद बखुद भारत की धार्मिक राजधानी काशी का नाम स्फुटित हो जाता है/जहा आज भी पत्थर को भगवान और गाय को माता सम्मान दिया जाता है/काशी के धर्म और संस्कृति के चादुर्दिक विकास में यहाँ के शिक्षा और शिक्षाविदों का अभूतपूर्व योगदान रहा है/
ऐसे ही महा मनीषियों में थे पंडित मदन मोहन मालवीय /प्रयाग से काशी के इस महा संगम को भला कौन नहीं जानताकाशी की तत्कालीन शिक्षा के गिरते स्तरको नहीं पचा पाने वाले इस महा मानव की तपस्या की साक्षात् प्रतिमूर्ति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आज देश ही नहीं वरण विश्व में अपनी छटा बिखेर रहा है
आखिर क्या थी जो इतनी बड़ी ईमारत खड़ा करने को एक साधारण मनुष्य को सक्षम बना दी /तो वह थी सामान्य जानता को सस्ती शिक्षा ,सस्ता स्वास्थ्य और समुचित रोजगार दिलाने का करुणित ह्रदय और उससे उपजा दृढ विश्वास
लेकिन कष्ट ही नहीं क्षोभ है की आज का वर्तमान विश्वविद्यालय परिदृश्य उनके सपनो से दूर होता नजर आ रहा है/आज नहीं यहाँ सस्ती शिक्षा है न ही सेवा भाव वाला सस्ता स्वास्थ्य /आज से बीस साल पहले के विश्वविद्यालय और आज के विश्वविद्यालय में बहोत अंतर है/अंतर होना भी चाहिए ,लेकिन कष्ट यह की यहाँ भी अब घुरहू के लड़के पढाई नहीं कर सकते /दिनोदिन फीस व्रिध्ही और चिकित्सा में अनाचार यहाँ का पर्याय बन चूका है/कारण लोगों में मदद को भावना का निरंतर लोप /
एक बार मालवीय जी महाराज के समय में छात्रों ने मेस की समस्याओं को लेकर हड़ताल शुरू कर दिया,अब क्या महराज जी पहुचे ,उन्होंने छात्रों से कहा की तुम लोग नहीं भोजन करोगे तो मैं भी यही हड़ताल पर तुम्हारे साथ बैठ रहा हु/अब क्या था छात्रों को अपनी जिद छोडनी पड़ी /पर आज ऐसा नहीं है यहाँ के वर्तमान प्रशाशन से ऐसे प्रेमालाप जैसे रूप की तो उम्मीद नहीं की जा सकती अपितु ये लड़कियों तक पर भी लाठी बरसाने से बाज
नहीं आते/
अतः सब कुछ वही है बदला क्या हमारी सोच/पिछले साल मार्च २००८ में प्रधान मंत्री डा .मनमोहन सिंह का यहाँ दीक्षांत समारोह में आना हुआ ,छात्रनेताओं का एक समूह उनसे मिलाने की अनुमति किसी तरह से लेकर तत्कालीन कुलपी प्रो पंजाब सिंह के रवैये का जिक्र किया गया तो प्रधानमंत्री जी पूछ उठे की अकेडमिक काउन्सिल के लोग क्या कर रहे हैं ,तब तक मेरे धैर्य का बाँध टूट चूका था औरबोल उठा की काउन्सिल में सारे अपराधी भरे हुए हैं आप चाहे तो आई.बी से जाँच करा लीजिये और गलत होने पर मुझे सजा करा दीजियेगा/इसका हश्र ये हुआ की प्रधानमंत्री जी ने कुलपी के साथ भोजन करने तक से मन कर दिया/

अतः जरूरत है तो विश्वविद्यालय को हरा भरा रखने का नहीं की सुखाने का प्रयास करने का और आज के विश्वविद्यालय के लोग इसे ले डूबने पर आमादा है,अच्छा है की मालवीय जी स्वर्ग सिधार गए हैं अन्यथा ये लोग उन्हें दहाड़ेमार कर रोने पर विवश कर देते और मानवता भी शर्मसार हो जाती/

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