मंगलवार, 3 अगस्त 2010

अब एक नया ढिढोरा -न्यायिक सुधार का

आज एक हफ्ते से लगातार अख़बारों में छाये हुए है तथाकथित विद्वान लोग जो अपने-अपने ज्ञान बाट रहे हैं की कैसे देश की न्याय व्यवस्था सुधारी जाय। ये वातानुकूलित कार्यालय तक को ही दुनिया समझने वाले कितना सटीक सलाह दे पाएंगे भगवान ही जाने। गाँव में एक नाली के लिए जन्म-जन्मान्तर से केस चल रहे होते हैं और जितना पैसा उस केस के लड़ने में दोनों पक्षों से खर्च हुए उतने में सही मायने में तो कई एकड़ खेत बैनामा करा लिया जाता। बात यहीं नहीं ख़त्म होती अब ये केस इतनी पुरानी हो गयी की दोनों विरोधी पक्षों की दुश्मनी को समय ने दोस्ती में ताफ्दील कर दिया और ओनो पक्षों के लोग एक साथ मोटर साइकल पर सवार हो केस लड़ने कचहरी जाते हैं,एक दुसरे को नाश्ता कराते हैं,लेकिन सिर्फ न्यायलय के लेट लतीफी के कारन आज भी कागजी दुश्मन बने हुए हैं तो समझ में नहीं आता हम जब चाहते हैं,जो चाहते है संवैधानिक सुधार करा लेते हैं,तो इस पर विचार क्यों नहीं होता।

आजादी के तिरसठ सालों बाद भी इन मदांध ,घटिया और स्वार्थी राजनेताओं को सन्देश यात्राओं में,साइकिल यात्राओं में तो रूचि है जिससे वे भारत ही नहीं अमेरिका के भी राष्ट्रपति हो जाय लेकिन देश के गरीबों के कटोरे में रोटी भी नसीब है या नहीं ,उसकी जहमत ये क्यों लें। अभी चार-पांच साल पहले बनारस के पांडेपुर स्थित पागलखाने में सरला नाम की एक बुजुर्ग महिला का प्रकरण प्रकाश में आया था जिसे न्यायलय ने पागल करार दे पागलखाने पंहुचा तो दिया पर उसकी सुधि उतार दी,अब बेचारी सरला को जबरदस्ती पागल बन अपना जीवन कुर्बान करना पड़ा। उसके घर वाले भी उसे पहचानने से इनकार करतेरहेबाद में एक प्रतिष्ठित वकील रमेश उपाध्याय की निगाह पता नहीं कैसे उसकी बेबसी पर पडी उसे पागलखाने से तो छुटकारा मिल गया ,न्यायलय तो उसे भला ही चूका था ,उसके नाम से कुछ जमीन-जायदाद थी जिसके लालच में बुधिया के तथाकथित देवर उसको अपने साथ ले तो गए। लेकिन न्यायलय क्या सरला के बीते चालीस सालों को वापस कर पायेगा,उसकी नौजवानी जो काल कोठारी में बीतने को मजबूर थी उसको किसी भी तरह से भरपाई किया ज सकता है तो कत्तई नहीं।

दर इतना ही नहींहै की सरला के साथ ऐसा हुआ ,सरला तो देर-सबेर मुक्ति पा गयी,जाने कितनी सरला ऐसे ही सही न्याय के ललक में अंधे क़ानून के सामने दम तोड़ देती होंगी। उनका क्या होगा,क्या व्यवस्था की गयी सरकार द्वारा उनकी सुरक्षा के लिए। सबसे बड़ा कोढ़ समाज की पुलिस व्यवस्था है,जिस पर कोई रोकटोक नहीं। पहले तो महिलाए कम से कम मारी नहीं जाती थी अब दिन जैसे kal सुलतानपुर में एक अध्यापिका की गयी गयी तो में मौत

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