गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

होली भी आखिर हो ही ली

पंच सितारा होटलों में शाम बिताने वाले के लिए होली क्या और दिवाली क्या?होली -दिवाली जैसे तीज-त्योहारों का मतलब तो उनके लिए होता है जिन्हें इंतज़ार होता है की इस पर्व पर नए कपडे बनेंगे ,नए जोश के साथ एक दिन फुर्सत से घूमेंगे/उस बाप को ख़ुशी होती है जिसका बेटा परदेश से आने को होता है या तो फिर बच्चों को रंग-गुलाल और पिचकारी से होती है/
वक्त बदला वक्त की धारा बदली लोगों के जीने और जिलाने की तहजीब बदली /भंग और ठंढई की जगह चिकेन और अंगूर की बेटी ने ले ली /एक तरफ महगाई ने कमर तोड़ कर रख दी है लेकिन दूसरी तरफ मधुशाले की भीड़ आलिशान अंदाज में बढ़ रही है/सामान्य घरेलू खाद्य रसोई की पहुच से बाहर होते नजर आने लगे हैं,निःसंदेह गुझिया और चिप्स की तरफ से लोगों का आकर्षण कुछ कम हुआ है लेकिन क्या उसमे महगाई का ही सारा योगदान है तो नहीं ,हमारी सोंच भी ठिगनी हुई है/
हम बाज़ार में चावल खरीदने जाते हैं तो उसकी कीमत बढ़ी हुई देख कहते हैं महगाई बहुत हैजोकि एक परिवार में अगर प्रति माह बीस किलो चावल खर्च होता है तो अधिकतम सौ रूपये अधिक देने होंगे अच्छे चावल खरीदने के लिए /अगर हम बारीकी से अध्ययन करे तो पाएंगे अक्सर लोग ऐसी जगह महगाई का जिक्र करते हैं पर अगर उस घर में एक भी आदमी पान मसाला खाने वाला है और दस रूपये का भी मसाला खाता है तो महीने में तीन सौ का मसाला खा जाता है /
एक और फैशन बढ़ा है अगर कोई दुबला -पतला शक्ल का दिखता है तो खुले आम लोग आज उसे बीयर पीने की सलाह देते हैं ताज्जुब लोग मान भी जाते हैं/एक बीयर की कीमत सत्तर रूपये है जितने में लाख महगाई के बावजूद तीन लीटर दूध आ जायेंगे और क्या तीन लीटर दूध से ज्यादा सेहतमंद साबित हो सकता ये जौ का पानी जाने जानेवाला बीयर/
अतः परेशां तो लोग अपनी सोंच से होते हैं सामाजिक परेशानियाँ तो सामूहिक है जो सभी झेलते हैं/इसलिए प्रेम ,उन्माद ,हर्ष ,उल्लास ,रंग ,गुलाल ,भंग ,ठंढाई ,गोझिया ,पापड़,कुरता,पायजामा ,लहगा ,चुंदरी ,इत्यादि गहनों से सजे इस मिलन के पर्व पर महगाई का असर न होने दे ,अपनों सोंच बदलें और जियें जी भर के...............
होली की ढेरों मुबारकबाद ..........

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

अमीरों की सरकार-कांग्रेस

वोमेश चंद बनर्जी और सी .राजगोपालाचारी ने जिस कांग्रेस की नींव रखी थी शायद वो पूजीपतियों के ईंट से बनने वाला महल साबित हो गया है'.निर्विवाद रूप से कांग्रेस को कभी गरीबों की सरकार कहा जा सकता था ,जिसमे लालबहादुर शास्त्री सरीखे लोग भी प्रधानमंत्री तक ही नहीं हुए अपितु राष्ट्र को कई बड़ी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाये.परन्तु आज क्षोभ होता है आज के कांग्रेस की नीति और नीयति पर।
कांग्रेस के तथाकथित राजकुंवर राहुल गाँधी जोर शोर से नवयुवकों के राजनीती में आगे आने की बात कर रहे है,लेकिन क्या राजनैतिक विरासत रखने वाले जितिन प्रसाद, सचिन पायलट ,ज्योतिरादित्य सिंधिया और उमर अब्दुल्लाह ही बस देश के नवयुवकों में आते हैं.क्या किसी सामान्य परिवार के ,राजनैतिक सोंच रखने वाले को आगे बढाने या भेजने का प्रयास भी किया महोदय ने/तो जवाब मिलेगा कत्तई नहीं,.
तो क्या इन्ही लोगों के भरोसे २०१२ फतह करने चले हैं राजकुमार,देखिये इस आनन् -फानन में कहीं हाथ में आया २०१४ भी न खिसक जय/इस समय कांग्रेस संगठन में पद बाटने का काम जोरों पर है,जिसका पैमाना ये है कि जो जितने सदस्य बनाएगा उसे उस तरह के अधिकार सौंपे जायेंगे/इसमें होता था क्या कि चंद बड़े नेता जिनके पास पैसे कि कमी नहीं है या जो नेता कम ठेकेदार ज्यादा हैं वे घर बैठ कर फर्जी नाम भर के खूब पैसे भेज देते थे और उन्हें आँख मूद कर आई .सी .सी .मेम्बर ,पी.सी सी मेम्बर या प्रदेश या देश क़ी संगठन क़ी बागडोर सौप दी जाती रही/ लेकिन इस बार उनकी एक न चली क्योंकि सदस्यों क़ी फोटोग्राफी भी हो रही थी/सबके हवा-हवाई सदस्य गायब हो गए,तो होना क्या था ये लोग इतने मुर्ख थोड़े ही हैं/बनारस में कांग्रेस कार्यालय में ही चोरी हो गयी और विशेष रूप से वही रजिस्टर जिसमें उल्लिखित था क़ी कौन कितने मेम्बर बनाया,गायब कर दिया गया/अब फिर इन नेताजी लोगों क़ी चाँदी ही चाँदी है,जो एक समर्थक नहीं खोज सकते अब वो भी हजारो मेम्बर बनने का किला फतह कर रहे है ,लग रहा है अब फिर आँख मूद कर अपने हित नात रिश्तेदारों को पद बाँट दिया जायेगा/मारा जायेगा वो छोटा नेता या कार्यकर्त्ता जो लखनऊ या दिल्ली तक अपनी जड़ें नहीं जमा पाया है/फिर अनाचार होगा/
तो इस बार क्या करोगे राहुल बाबू अब आपकी शराफत का क्या होगा,या ए बात आपको पता ही नहीं है,आपको आपकी लखनऊ क़ी लोकप्रिय नेत्री रीता जी ने कुछ नहीं बताया क्या?
अब बताइए क्या इन्ही नेताजी लोगों के बल पर आप बांह चढ़ाये फिरते हैं अगर यही सच है तो मित्रवत सलाह है इनसे सावधान हो जाइये अभी भी वक्त है ,दोनों काम हो जायेगा २०१२ वाला भी और २०१४ वाला भी ,क्योंकि जनता में तो आपकी पूछ बढ़ी है इससे कत्तई नहीं नकारा जा सकता /उसका फायदा भी उठा लीजिये और ........./

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

लम्बा है सफ़र फिर भी कहीं रत तो होगी

उत्तर प्रदेश का ही नहीं वरन देश का ह्रदय कहे जाने वाले बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस में जहरीली शराब से बीसों की मौत से सरकार सिर्फ एक लाख रूपये का चेक देकर इतिश्री कर लेने को ही अपना राजधर्म समझती है,जिससे जाने -अनजाने में दूसरे नक्कारे शराबियों के परिवारों के भी मुह में पानी आने लगे की काश उन्हें भी एक लाख रूपये एक साथ देखने का मौका मिल जाता/कुछ लोगो को पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेजी भी उनको देखने से नहीं लगता की इतनी बड़ी मुहिम को ये कमजोर लोग हवा दे पा रहे होंगे/ तो आखी किस राजनितिक या गैर राजनैतिक स्वार्थ के तहत इन बड़े हाथों तक सरकार अपने में पहुचने को असफल पा रही है/विधानसभा अध्यक्ष श्री सुखदेव जी आगमन हुआ वही रटी-रटाई भाशंबाजी, वही नोट दिखा कर जुबान बंद करने की चालाकी और सब कुछ फिर सर्द की कोख में नाम पद जायेगा/
आखिर कहाँ होते ऐसे जहरीले शराब का व्यवस्थापन ,क्यों नहीं पकडे जा रहे है ऐसे देशी आतकवादी तो जनता को जनता को शराब की थैली में मौत बताते है औए खुद संसद -विधायक बन बड़ी गाड़ियों में सुशोभित होते है./

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

आखिर आ ही गया प्रेम का महापर्व वेलेंटाइन डे

पोथी पढ़ -पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय ,ढाई आखर प्रेम का पढ़े जो पंडित होय .जी हाँ ,ये उतना ही सच है जितना आज का युग/सर्द हवा ,सरसों की महक और और बिंदास मौसम का झूमना भला किस जाहिल हृदय को कवि न बना दे./उसमे गीत ,संगीत का साहित्य और समाज का बड़ा ही विचित्र योगदान है.फिल्म कटी पतंग का सदा बहार नगमा जिस गली में तेरा घर न हो बालमा,भला किस मुर्दे की हाड़ में हलचल नहीं ला देगा/
आज गली ,मोहल्ले,शहर बाजार, स्कूल-कालेज हर जगह लोग नजरे बिछाए इसका स्वागत करने में लगे हुए हैं/ऐसे में चाँद राजनितिक और गैर राजनितिक संगठनो के लोग अखबारों में छपने के लिए तोड़ फोड़ और बिद्रोह मचाते हैं/इतिहास गवाह है जिस चीज को जितना रोका जाता है उसे उतना ही परोक्ष बढ़ावा मिलता है/हा इससे कत्तई नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि कुछ लोग इसका गलत तरीके से सेलेब्रेशन करते है.जो शायद गलत है/
उसके पीछे कारण है कि संत वेलेंटाइन के सन्देश को हम गलत वे में लेते हैं/सच तो यह है कि बूढा -जवान,स्त्री -पुरुष ,नर -बानर कोई भी हो सकता है आपका वेलेंटाइन -इसको सिर्फ नौजवान युवक और युवती तक सीमित कर इसके वजूद को खतरे में न डाले/रही बात विरोधिओं कि तो बिना विरोध के भी कोई जीना है/अरे पहले वेलेंटाइन डे मना करते थे ,अब वेलेंटाइन वीक मनाये जा रहे है और कल वो दिन दूर नहीं जब २०१४ यानि चार साल बाद वेलेंटाइन इयर मनाएंगे जायेंगे/तो किसको बना रहे हैं आप इस बार अपना वेलेंटाइन /

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

उत्सव का उत्सव है विचारणीय

अभी -अभी बड़े पुलिस अफसर राठौर पर उत्सव जैसे निर्दोष प्रवित्ति और पृष्ठभूमि जैसे लड़के का कातिल अंदाज सोचने पर विवश कर देता है.यह सच है कि अगर उसने ऐसा भावनाओं में बह कर किया तो क्यों ?बड़ा अधिकारी होने के नाते राठौर को मेहमान नवाजी देना तो कत्तई उचित नहीं पर इस तरह किसी शिक्षित परिवार के लड़के का कानून को हाथ में लेना भी तो उचित नहीं ठहराया जा सकता.राठोर ने जघन्य अपराध किया है इसमें कोई संदेह नहीं ,लेकिन उसके खून के छीटे अपने ऊपर पोतने कि बाई को भी तो सराहा नहीं जा सकता.उसको तो उसको किये कि सजा मिल ही रही है और ऐसे मामले तो हजारों पड़े है जहाँ सामूहिक नरसंहार के दोषी भी जेल कि काल कोठरी में पंचसितारा होटलों का लुत्फ़ उठा रहे है/तो आखिर उत्सव का खून सिर्फ उसी पर क्यों खौला/और जैसा अक्सर होता आया है,बड़ी गलतियों से बच पाने का सबसे रटा -रटाया राग है मानसिक असंतुलन /वह लांच कर ही दिया गया है/
तो कहीं ये शोहरत लूटने का नायब तरीका तो नहीं?कड़वा है पर विचारणीय है/

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

शुरुआत

कुछ इस तरह साल की शुरुआत मनाइए,
की गर्दिश में भी व्हशल की रात पाइए /
आसमान के तारे गिनने से मिलेगा क्या ,
तारे लाने जमी पर एक रात जाइये /
खुद खुश रहने से ज़माने को क्या लेना,
हर शख्स खुश रहे दिन रात गाइए/
मयखाने में मयस्सर शराब नहीं ऐसी ;
जो गम को भुला दे ओ सौगात लाइए/
गलिओं का वासी हूँ आसमा ही छत है ,
फुटपाथ के परिंदों की कली रात धाईये/
फूल और काँटों की ये अबूझ पहेली है,
मिलकर किसी बच्चे का बचपन बचाइये /
कागजी पुलिंदों से चलती नहीं ये दुनियां ,
दुःख दर्द सब मिटा दें इस साल आइये /



जब पड़ी मार शमशेरण की त महाराज मै नाई हूँ

खूब मजा आया ठाकरे परिवार को अपनी शेखी बघारने में की मुंबई अकेले उनके वालिद की संपत्ति है जहाँ हर कोई मुह नहीं मार सकता /राहुल गाँधी का खुलेआम लोकल ट्रेन में विचरण करना,ऊपर से शरद पवार का उनके घर पहुच जाना ,अब दिखाओ न भाई अपने दरवाजे को काले झंडे /कहाँ चली गयी सब हेकड़ी/
लेकिन हाँ एक बात तो विचारणीय है कि देश में और भी बड़े और अनुभवी कहे जाने वाले नेता है जो हमेशा बयां जरी कर कर कान पका देते है ,उन्होंने कभी इस हिम्मत भरे काम का लुत्फ़ उठाने का प्रयास क्यों नहीं किया ?क्या ये सारे लोग केवल जबानी घोड़े छोड़ने और जनता को अपनी मीठी झूठी बातों में बाधने के लिए ही धरती पर अवतरित हुए हैं/इससे एक बात तो साफ जाहिर है कि देश युवा पीढ़ी चला सकती है,और राष्ट्र विरोधी ताकतों का वे जवाब भी दे सकते हैं/फिर कब्र में पैर लटकाए ये ब्रिध्हाश्रम कि धरोहरें हसते-हसते अपनी राजनितिक विरासत अपने युवाओं को सौंप कर एक कुशल सेना नायक का काम क्यों नहीं करते?
राष्ट्र त्याग और बलिदान के जोश के संघर्ष से गतिशील होता है न कि स्वार्थ कि लुट -पुट विचारधारा से/अतः कुछ हो या न हो ठाकरे बंधुओं का मिथ्या अभिमान तो टूट ही गया,और नेप से गए अपने कुनबों के रसोई ने/हा हा हा पड़ी मार शमशेरण की तो महाराज मै नाई हूँ हूँ और हूँ /

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

गाँधी के सिद्धांतों की अनदेखी कर रहे गाँधी के नाम पर राजनीती करने वाले लोग

आइन्स्टीन ने सच ही कहा था की आने वाली पीढ़ी विश्वास नहीं कर पायेगी कि गाँधी कोई हांड-मांस से बना व्यक्ति था /राष्ट्र के इस महँ साधक ने एक नई दिशा दी ,एक नई जीवन पद्धति दी, लेकिन आज उनके नाम पर राजनीती करने वाले लोग ही उनके सिद्धांतों कि धज्जियाँ उड़ा रहे हैं /
गाँधी गरीबों के लिए लड़े,कमजोरों के लिए मरे लेकिन आज के लोग उनकी नाम और दर्शन का खुलेआम पोस्त्मर्तम करने पर लगे हुए हैं/किसी भी सामान्य व्यक्ति कि तिन मूलभूत आवश्यकता भोजन ,वस्त्र और मकाँ उनसे दूर हो रही हैं या तो कर दी जा रही हैं/चंपारण क़ी लड़ाई को ही लें तो गाँधी ने सामान्य किसानों के लिए वहां वर्षों बिता दिया /आज उन्ही के कुनबे के कहे जाने वाले गरीबों का गला कट रहे हैं /चीनी क़ी कीमत,चावल ,दल तेल अन्य सरे खाद्य पहुच से बहार हो रहे हैं./पहले कीमतें एक रूपया बढती थी आज इतनी बढती है क़ी दुकानदार शर्मा जाता है इसको बताने में/गैस क़ी ही चर्चा करे तो रसोई गैस क़ी कीमत सौ रूपया बधाई जाएगी/ ये कैसा मजाक है गरीबों क़ी गरीबी के साथ ,अब मन जाओ अरे अब तो रिश्तों में भी बात लेन लगी है तेरी ये महगाई /अपने पुरखों क़ी लाज बचालो,प्यारे नहीं तो कंडे भी नहीं मिलेंगे आंसू पोछने को/और मिशन २०१२ का अंत हमेशा हमेशा के लिए हो जायेगा २०१० में ही /
हो सकता है गरीबों क़ी दुआएं फिर आपको संसद में सत्तासीन कर ही दें /

बच्चे तो बच्चे बाप रे बाप

इस समय समाचार पत्रों का कालम मराठी हिंदी विवादों से भरा पड़ा है /अभी तक तो सब कुछ ठीक था क़ि बात अनुभवहीन राजनीतिज्ञों क़ि थी ,पर अब तो अति हो गयी जब शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे भी वही राग अलाप रहे है क़ि मुंबई देश क़ि धर्मशाला नहीं है /उनके जैसे बुजुर्ग राजनेता से जब ऐसे विध्वंस क़ि शुरुआत होगी तो अब बुद्धि शुध्हि यज्ञ करना होगा जिससे इनकी मानसिक इस्थितियाँ सुधरें / इन लोगो ने कभी अमिताभ बच्चन तो कभी शाहरुख़ खान तो कभी मनोज तिवारी को बहार का रास्ता दिखने क़ि धमकियां दे डाली तो कभी भाषाई विवाद फैलाया/जब क़ि कड़वा सच यह है क़ि अगर वास्तव में अन्य प्रदेशों के लोग वहां से अपने गाँव को वापस आना शुरू कर देंगे तो मुंबई का अस्तित्वा खतरे में पड जायेगा /और फिर ये ठाकरे परिवार प्रदेश क़ि बदहाली के लिए जिम्मेदार हो अपने को माफ़ नहीं कर पायेगा /
अब तो कम से कम बुध्हि खुल जानी चाहिए क़ि उनके अपने कहे जाने वाले पार्टी के लोग भी उनके खिलाफ कमर कसने लगे हैं /इतना ही नहीं उनके गुडगान करनेवाले कुछ तथाकथित उत्तर भारतीय नेताओं ने तो यहाँ तक कह डाला क़ि अगर ये लोग नहीं अपनी गलतियों क़ि माफ़ी पुरे देश से मांगते हैं तो हम मुंबई जाकर उन्हें उनकी भाषा में समझाने का कम करेंगे/अतः अब स्थितियां बिगड़ चुकी है अब तो सुधर जाओ प्यारे नहीं तो आपका हाथ भी मलने के लिए आपके पास नहीं होगा

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

आखिर भारतीयों का भारत कहाँ है

आजादी का सातवा दसक पूरा कर रहा हमारा राष्ट्र अभी भी जहा का तहा दिख रहा है उसका कारण की हम बटती हुई मिटटी का कण बन हमेशा बटने बटाने को आतुर होते है / महाराष्ट्र मराठियों का है बेशक ,बंगाल बंगालिओं का है ,आसाम आसामिओं का तो भारतीयों का भारत कहाँ है?जिस दिन मुंबई में ब्लास्ट हुआ था उस दिन आखिर कहाँ थे ये राष्ट्रीय धरोहर लोग जिनके दिमाग खँडहर से हो गए है /वे उस दिन क्यों नहीं कहे की सैनिक जो राष्ट्र भावना से कम कर रहे थे, मरने मारने पे उतारू थे ,अपने प्राणों की आहुति देकर लोगों को बचाए, वे मराठी होने चाहिए/भरी संकट है बच्चे बिगडैल हो जाते है तो गार्जियन सुधारने का काम करता और यहाँ तो गार्जियन की ही बुध्हि घास चरने गयी है /अरे ये तो मानसिक क्षुद्रता की बात है हमारे तो संस्कार में है अतिथि देवो भव/और हम अपने घर में घर का तो छोडो अतिथि का भी सत्कार नहीं पा सकते/ बनारस में तो सारी दुनिया के लोग बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने आते है अतः क्या हम अपनी भाषा जबरदस्ती उनपर थोप के उनपर अपनी भाषा सिखने और उनको गलत ढंग से शोषित करने की शर्मनाक जिम्मेदारी ओढ़ ले/
इन राष्ट्र विरोधी लोगों के खिलाफ तो सीधे पोटा लगा कर इनको काल कोठरी हमेशा के लिए स्थापित कर देना चाहिए जिससे कम से कम किसी और की हिम्मत ऐसी राष्ट्र विरोधी नीतियों में लिप्त होने की नहीं होती /ये तो मानसिक आतंकवाद फैला रहे देश के अन्दर फल फूल रहे बड़े आतंक वादी है जिनका खुली सडको पर घुमं कत्तई खतरों से खली नहीं है/अनुरोध ही नहीं अपील है सरकार के गृहमंत्रालय और प्रधानमंत्री से की तत्काल प्रभाव से उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर इनको अन्दर का रास्ता दिखाएँ /जिससे माँ भारती की आत्मा लहूलुहान होने से बच जाये /

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

आधुनिकता के अंधेपन में सांस्कृतिक विघटन

शिक्षा समाज की रीढ़ होती है और रीढ़ शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग,यदि किसी कारण वश यह रीढ़ टूट जाती है तो आज तक धरती पर कोई ऐसा सर्जन पैदा नहीं हुआ जो इस टूटी रीढ़ को जोड़ सके/शायद हमारे समाज की भी स्थिति
कुछ
इसी तरफ अग्रसर है/आजादी के बाद हम दिनोदिन चतुर्दिक विकास की चादर फ़ैलाने में खुद को समर्थ पाए है/
जिसमे आधुनिक शिक्षा के योगदान को नाकारा नहीं जा सकता /लेकिन इसकी भ्रामक स्थिति भी स्वीकार्य नहीं है/आज हर शहर,गली मोहल्ले में कुकुरमुत्ते की तरह इंग्लिश मीडियम स्कूल फल-फूल रहे हैं/जिसमे बच्चो का सांस्कृतिक बदलाव किया जा रहा है वो भी पारिवारिक स्टार पर/
आज बच्चो को रोटिया नहीं सैंडविच दी जाती है टिफिन के लिए ,जो जाने अनजाने में शुरुआत है शारीरिक विघटन का /अब क्या मानो लीसेंसे मिल गया अनाचार का /फिर ये बच्चे इन कुल्गुरुओं के हाथ में सुपुर्द कर दिए जाते है,जहा हसबंड डे और वेलेंतैन डे तो केक कट कर खूब चाव से मनाया जाता है पर स्वतंत्रता दिवस और गरतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रिय पर्व पर इन मासूमो के हाथ पर एक चाकलेट भी नसीब नहीं करायी जाती है /
यही बच्चे बड़े होकर जब अपने रिवाजों को भूल जाते है तो कौन सा पाप कर रहे है/
आज समाज बचपन और बुढौती की दुश्वरिओं को झेल रहा है ,कारण संयुक्त परिवारों का विघटन /जाहिर सी बात है की जो बच्चे किसी नर्स की हाथ में पाले होते है,जो अपनों किलकारिया माँ बाप को सुना भी नहीं पते वो बड़े होकर क्या खाक बूढ़े बाप की सेवा कर पाएंगे /
अतः जरूरत हमको बदलने की,वश /