गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

आखिर आ ही गया प्रेम का महापर्व वेलेंटाइन डे

पोथी पढ़ -पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय ,ढाई आखर प्रेम का पढ़े जो पंडित होय .जी हाँ ,ये उतना ही सच है जितना आज का युग/सर्द हवा ,सरसों की महक और और बिंदास मौसम का झूमना भला किस जाहिल हृदय को कवि न बना दे./उसमे गीत ,संगीत का साहित्य और समाज का बड़ा ही विचित्र योगदान है.फिल्म कटी पतंग का सदा बहार नगमा जिस गली में तेरा घर न हो बालमा,भला किस मुर्दे की हाड़ में हलचल नहीं ला देगा/
आज गली ,मोहल्ले,शहर बाजार, स्कूल-कालेज हर जगह लोग नजरे बिछाए इसका स्वागत करने में लगे हुए हैं/ऐसे में चाँद राजनितिक और गैर राजनितिक संगठनो के लोग अखबारों में छपने के लिए तोड़ फोड़ और बिद्रोह मचाते हैं/इतिहास गवाह है जिस चीज को जितना रोका जाता है उसे उतना ही परोक्ष बढ़ावा मिलता है/हा इससे कत्तई नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि कुछ लोग इसका गलत तरीके से सेलेब्रेशन करते है.जो शायद गलत है/
उसके पीछे कारण है कि संत वेलेंटाइन के सन्देश को हम गलत वे में लेते हैं/सच तो यह है कि बूढा -जवान,स्त्री -पुरुष ,नर -बानर कोई भी हो सकता है आपका वेलेंटाइन -इसको सिर्फ नौजवान युवक और युवती तक सीमित कर इसके वजूद को खतरे में न डाले/रही बात विरोधिओं कि तो बिना विरोध के भी कोई जीना है/अरे पहले वेलेंटाइन डे मना करते थे ,अब वेलेंटाइन वीक मनाये जा रहे है और कल वो दिन दूर नहीं जब २०१४ यानि चार साल बाद वेलेंटाइन इयर मनाएंगे जायेंगे/तो किसको बना रहे हैं आप इस बार अपना वेलेंटाइन /

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