शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

बच्चे तो बच्चे बाप रे बाप

इस समय समाचार पत्रों का कालम मराठी हिंदी विवादों से भरा पड़ा है /अभी तक तो सब कुछ ठीक था क़ि बात अनुभवहीन राजनीतिज्ञों क़ि थी ,पर अब तो अति हो गयी जब शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे भी वही राग अलाप रहे है क़ि मुंबई देश क़ि धर्मशाला नहीं है /उनके जैसे बुजुर्ग राजनेता से जब ऐसे विध्वंस क़ि शुरुआत होगी तो अब बुद्धि शुध्हि यज्ञ करना होगा जिससे इनकी मानसिक इस्थितियाँ सुधरें / इन लोगो ने कभी अमिताभ बच्चन तो कभी शाहरुख़ खान तो कभी मनोज तिवारी को बहार का रास्ता दिखने क़ि धमकियां दे डाली तो कभी भाषाई विवाद फैलाया/जब क़ि कड़वा सच यह है क़ि अगर वास्तव में अन्य प्रदेशों के लोग वहां से अपने गाँव को वापस आना शुरू कर देंगे तो मुंबई का अस्तित्वा खतरे में पड जायेगा /और फिर ये ठाकरे परिवार प्रदेश क़ि बदहाली के लिए जिम्मेदार हो अपने को माफ़ नहीं कर पायेगा /
अब तो कम से कम बुध्हि खुल जानी चाहिए क़ि उनके अपने कहे जाने वाले पार्टी के लोग भी उनके खिलाफ कमर कसने लगे हैं /इतना ही नहीं उनके गुडगान करनेवाले कुछ तथाकथित उत्तर भारतीय नेताओं ने तो यहाँ तक कह डाला क़ि अगर ये लोग नहीं अपनी गलतियों क़ि माफ़ी पुरे देश से मांगते हैं तो हम मुंबई जाकर उन्हें उनकी भाषा में समझाने का कम करेंगे/अतः अब स्थितियां बिगड़ चुकी है अब तो सुधर जाओ प्यारे नहीं तो आपका हाथ भी मलने के लिए आपके पास नहीं होगा

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