बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

उत्सव का उत्सव है विचारणीय

अभी -अभी बड़े पुलिस अफसर राठौर पर उत्सव जैसे निर्दोष प्रवित्ति और पृष्ठभूमि जैसे लड़के का कातिल अंदाज सोचने पर विवश कर देता है.यह सच है कि अगर उसने ऐसा भावनाओं में बह कर किया तो क्यों ?बड़ा अधिकारी होने के नाते राठौर को मेहमान नवाजी देना तो कत्तई उचित नहीं पर इस तरह किसी शिक्षित परिवार के लड़के का कानून को हाथ में लेना भी तो उचित नहीं ठहराया जा सकता.राठोर ने जघन्य अपराध किया है इसमें कोई संदेह नहीं ,लेकिन उसके खून के छीटे अपने ऊपर पोतने कि बाई को भी तो सराहा नहीं जा सकता.उसको तो उसको किये कि सजा मिल ही रही है और ऐसे मामले तो हजारों पड़े है जहाँ सामूहिक नरसंहार के दोषी भी जेल कि काल कोठरी में पंचसितारा होटलों का लुत्फ़ उठा रहे है/तो आखिर उत्सव का खून सिर्फ उसी पर क्यों खौला/और जैसा अक्सर होता आया है,बड़ी गलतियों से बच पाने का सबसे रटा -रटाया राग है मानसिक असंतुलन /वह लांच कर ही दिया गया है/
तो कहीं ये शोहरत लूटने का नायब तरीका तो नहीं?कड़वा है पर विचारणीय है/

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें