मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

शुरुआत

कुछ इस तरह साल की शुरुआत मनाइए,
की गर्दिश में भी व्हशल की रात पाइए /
आसमान के तारे गिनने से मिलेगा क्या ,
तारे लाने जमी पर एक रात जाइये /
खुद खुश रहने से ज़माने को क्या लेना,
हर शख्स खुश रहे दिन रात गाइए/
मयखाने में मयस्सर शराब नहीं ऐसी ;
जो गम को भुला दे ओ सौगात लाइए/
गलिओं का वासी हूँ आसमा ही छत है ,
फुटपाथ के परिंदों की कली रात धाईये/
फूल और काँटों की ये अबूझ पहेली है,
मिलकर किसी बच्चे का बचपन बचाइये /
कागजी पुलिंदों से चलती नहीं ये दुनियां ,
दुःख दर्द सब मिटा दें इस साल आइये /



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