सोमवार, 7 जून 2010

असहज होतीं भोले की नगरी की पार्किंग व्यवस्था

बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी वाकई देवी-देवताओं के ही भरोसे चल रही है.पुरे शहर में जाम का बोलबाला,धूल की चादर में लपटी अकुलाई भीड़,सम्हालना देवों के ही वश की बात है.इस लाचारगी के मुख्य कारणों का यदि जिक्र किया जाय तो उनमें से एक सबसे महत्वपूर्ण कारण समुचित पार्किंग व्यवस्था का न होना ,समझ में आता है ।
वाराणसी नगर-निगम का अधिकृत तथाकथित वर्षों पुराने स्थान जहाँ पार्किंग सुनिश्चित थी आज वहां चमकती इमारतें बन गयी है जिसको गिराने या हटाने का या तो वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था में माद्दा नहीं है या फिर अपने किसी स्वार्थ में इनसे पंगा नहीं लेना चाहते.हाँ एक विकास जरूर हुआ इन पार्किंग प्लेसेस को तो नहीं हटाया गया नए पार्किंग को जन्म दे दिया गया ,वर्तमान नगर आयुक्त द्वारा,शायद यही उनके लिए सबसे सहज रास्ता था।
अब तो हद तब पर हो गयी जब इन प्राइवेट पार्किंग का नगर निगम ने अधिकृत ठेका शुरू कर इसको अपने सरकारी झोले में जबरन डाल लिया ठेकेदार भी मस्त और उनका भी काम बनता.जालान का दुर्गाकुंड वाला ब्रांच हो या शाकुम्भरी काम्प्लेक्स गुरुधाम ऐसे कई जगहों पर ये गैर सरकारी स्टैंड ठेके के रूप में फल-फूल रहे है "जब सैंया भये कोतवाल तब डर काहे का"के तर्ज पर और जनता अपना असली जगह पैसेवालों या अपराधियों को अनजाने में दान कर या रखवालों की अकर्मण्यता का फल भुगत रही है।
मुख्यमंत्री का जब फरमान जारी होता है तो ये सारे बड़े अधिकारी न जाने किस स्वार्थ में सरकारी तंत्रों का दुरुपयोग कर रहे अपने साढ़ू भाईयों को नहीं छूना चाहते और जनता को खुली चक्की में किसी दुसरे पूजीपति के सहारे पिसने-पिसाने का ठेका दे देते है.इस पर भी एक कलम की जरूरत है.

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