आज देश के चाहे जिस विभाग को उसके अपने कामचोरी और निकम्मेपन से घाटा लगता है ,उस विभाग को निजी क्षेत्रों को सुपुर्द करने का राग अलापा जाने लगता है.आखिर क्या निजी क्षेत्रों में छः टांगों और बारह हाथों वाले होते हैं। तो नहीं। फिर या तो सरकारी व्यवस्था के तहत नौकरियों का तजुर्बा दिमाग से निकाल दें और सब कुछ प्राइवेट व्यवस्था के अंतर्गत चलने दें अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब प्राइवेट लोग सड़कों पर सरकारी व्यवस्था के हर एक कदम के विरोध में चिल्लाते नजर आयेंगे।
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