मंगलवार, 15 जून 2010

गंगा के बहाने सरकार से मोटी रकम वसूल करने में लगे तथाकथित बुद्धजीवी

"पानी लेने के बहाने आ जा "इस पंक्ति को ,इस गीत को आज के सामाजिक परिवेश में काशीवासियों ने एक नया आयाम दे दिया है ,सुनते ही आनंद आ जायेगा .जी हाँ ,आज सबसे आसन काम है दो शब्द गंगा पर बोलिए ,कही एकाक धरना प्रदर्शन कीजिये और उदारवादी महान अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री करोड़ों रूपये का प्रोजेक्ट दे देंगे,लीजिये अब आप ही गंगा की हालत सुधारिए.अब कोई पगलाया तो है नहीं की गंगा को सुधरने का प्रयास करे उसकी ईमारत भी तो बननी है।
बात थोड़ी कड़वी जरूर है लेकिन गंगा के हरिद्वार वाली धारा की तरह निर्मल और स्पष्टहै. अब तक जब भी गंगा के लिए सरकारी खजाने से रकम निकाली गयी ,वो कभी २०० करोड़ से काम नहीं रही ,फिर किसी दुसरे को ५०० करोड़ ,इस तरह से इतना अधिक पैसा सिर्फ गंगा के नाम पर अब तक सरकार द्वारा पास किया जा चूका है उतने में तो गोमुख से लेकर बंगाल की खाड़ी तक एक नयी गंगा खोद दी जाती और ये तथाकथित बुद्धजीवी ,महंत लोग गंगा के नालों तक को भी नहीं साफ कर पाए .अगर हम बनारस की बात करें तो पाएंगे कि यहाँ गंगा के नाम पर सरकार को सबसे अधिक छाला गया है,कभी वैज्ञानिकों द्वारा तो कभी बुद्धजीवियों द्वारा ,तो कभी महंतों द्वारा तो कभी संत-महात्माओं द्वारा और इतना पैसा मिलाने के बावजूद ये धर्म के पुरोधा लोग बनारस के रविदास पार्क के बगल से गुजरने वाले एक नाले तक का उपचार नहीं कर सके जो कि मिटटी तो दूर इतना पैसा मिला है इस नाम पर कि उन पैसे कि रेज्कारियों से ये खाइयाँ भरी जा सकती हैं.और सबसे बड़ा मजाक यह कि यह नाला कशी के सबसे बड़े धर्मगुरु और ,विश्व विख्यात पर्यावरण विद के लगभग घर से होकर ही गुजरता है.तो इस बार का पांच सौ करोड़ कहाँ जाने वाला है ये भी सोचने का विषय है,लग रहा है मुर्दे जलाने के शहर कि जनता भी मुर्दा हो चली है .इन बातों पर सोचने का ,और बनारसी जिन्दादिली मरना शुरू कर दी है।
अब सवाल उठता है कि क्या गंगा कि स्थिति पैसे से सुधर सकती है तो कभी भी नहीं फिर ये पैसा गोल मटोल लोगों के पेट में चला जायेगा .अगर जरूरत है तो मानसिक स्वच्छता कि,गंगा अपने आप साफ होजाएगी,निर्मल होजाएगी,पहले ये गंदे त्रिकुंड धरी जो कुण्डली मार कर गंगा को सुखाने पर लगे हैं ,पहले इनसे भी हिसाब चुकता करना होगा.जनता जिस दिन कषम खा लेगी गंगा को साफ़ रखने का उस दिन बिना पैसे के गंगा गंगा हो जायेगी।
अतः इस लेखनी के माध्यम से देश के मदांध नीति-नियंताओं से आग्रह है कि गंगा मरने के बाद मोक्ष देती है ,गंगा के नाम पर जीतेजी ही जनता को मोक्ष दिलाने का प्रयास इतनी मोटी रकम इन फिसड्डी हाथों पर कत्तई न दिया जाय अन्यथा गंगा के नाम पर ही महगाई इतनी परोक्ष रूप से बढ़ जाएगी कि गरीब जनता के पास कफ़न खरीदने के लिए पैसे नहीं होंगे और जब निर्वस्त्र लाशें पहुचेंगी तो मान गंगा दहाड़ें मार के रोने लगेंगी और फिर उसके आसूओं के बढ़ को रोक पाना सरकार के लिए मुश्किल होगा ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें