नया साल क्या आया मानो सारे लोग शिकायतों का पिटारा खोले सब कुछ सुना देने को तैयार हैं। अरे भाई इस देश में हमेशा से घोटाले होते रहते हैं,नेहरु से लेकर नरसिम्हा राव तक का घोटालिक इतिहास रहा तो फिर इस साल थोडा ज्यदा हो गया ,इसको चर्चेआम करने से बढ़िया है की इसका नाम तक न लिया जाय अन्यथा कही नए साल में भी ये घोटालेबाज गुरुगड़ कही इसको अपना महिमामंडन समझ बैठे तो फिर अगले क्या कई बरस होंगे लगातार इसके चौके-छक्के। इस लिए छोडिये हँसी-ख़ुशी करिए गत की विदाई और जोश से लबरेज हो आगत का स्वागत..........
नव वर्ष के नव प्रभात का नव भावाभिनंदन
गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
नव प्रभात के सुरमयी आगाज का स्वागत
कलुष-भेद तम हर प्रकाश नव ,जग-मग जग कर दे........फिर आया नूतन बरस पर खुशियों के बरसने और बरसाने का अद्भुत अवसर। अपने गलतियों को साल भर बाद याद करने का ,उससे और उसमें क्या खोया और क्या पाया से सीख लेने की नाटक करने का ,और फिर एक-एक दिन करके पुराने ढर्रे में ढल जाने का। वैसे अपने देश भारत वर्ष के बीते वर्ष पर अगर एक नजर रखी जाय तो पाएंगे की पूरी तरह से बीता साल भ्रष्टाचार को समर्पित रहा और महगाई को। घोटालों की लम्बी तादात की गिनना मुश्किल,कितनो की तो अर्थ भी समझ पाना कठिन।
लेकिन क्या हुआ,फिर नया साल अपने समय पर पहुच गया है,जरूरत है तो अपने गलतियों को स्वीकार करने की,यद्यपि ये हमारे देश के राजनेताओं के शब्दकोष में नहीं। फिर भी शायद देर सबेर होश आ ही जाय। बाकी घोटालेबाजों को घोटाले मुबारक,गरीबों को उनकी गरीबी मुबारक तो शरद पवार को प्याज औरन्य खाद्यों की महगाई मुबारक। प्रधानमंत्री को जेपीसी मुबारक तो सोनियां जी को अध्यक्षी मुबारक। सब अपनी मुफलिसी और अस्तित्व के संकट में ही सही एक बार ही सही बोल,दे सुस्वागतम,क्योको फिर भी थर्टी फर्स्ट मानेगा और लोग थिरकेंगे। नक्सली घटनाओं में हताहत और आये दिन अपने सरकारी विकास के खाते में ब्लास्ट की घटनाओं को सजोये सरकार की हर पहल मुबारक। तो आइये कराहों के बीच ही सही फिर से बोल ही दिया जाय.............नूतन वर्षाभिनंदन । जय हिंद।
लेकिन क्या हुआ,फिर नया साल अपने समय पर पहुच गया है,जरूरत है तो अपने गलतियों को स्वीकार करने की,यद्यपि ये हमारे देश के राजनेताओं के शब्दकोष में नहीं। फिर भी शायद देर सबेर होश आ ही जाय। बाकी घोटालेबाजों को घोटाले मुबारक,गरीबों को उनकी गरीबी मुबारक तो शरद पवार को प्याज औरन्य खाद्यों की महगाई मुबारक। प्रधानमंत्री को जेपीसी मुबारक तो सोनियां जी को अध्यक्षी मुबारक। सब अपनी मुफलिसी और अस्तित्व के संकट में ही सही एक बार ही सही बोल,दे सुस्वागतम,क्योको फिर भी थर्टी फर्स्ट मानेगा और लोग थिरकेंगे। नक्सली घटनाओं में हताहत और आये दिन अपने सरकारी विकास के खाते में ब्लास्ट की घटनाओं को सजोये सरकार की हर पहल मुबारक। तो आइये कराहों के बीच ही सही फिर से बोल ही दिया जाय.............नूतन वर्षाभिनंदन । जय हिंद।
सोमवार, 27 दिसंबर 2010
सचिन और भारत रत्न
सचिन तेंदुलकर का नाम क्रिकेट प्रेमियों के अलावा भी लगभग हर कोई जानता है। इससे कत्तई नाकारा नहीं जा सकता कि सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट कि दुनिया में देश का सर ऊचा किया। लेकिन उनके नाम को राम नाम की तरह जो जपा जा रहा है कि उन्हें भारत रत्न मिलना चाहिए तो रत्नीय ख़िताब पहचान पाने के लिए होते है न कि पहचान पर आईएसआई मार्क लगाने के लिए। भारतीय सिनेमा के हरदिल अजीज अमिताभ बच्चन साहब कही सचिन कि पहल इस लिए तो नहीं कर रहे कि वो भी अपने को भारत रत्न कि कतार में आक रहे है।
मैं सचिन का या उनको भारत रत्न देने का विरोधी नहीं,लेकिन भारत रत्न कि अपनी एक गरिमा है,मै ये भी नहीं कहता कि सचिन उस गरिमा के उपयुक्त है या नहीं लेकिन इतना तो जरूर है कि ऐसे बहुत नाम है जो अपने क्षेत्र में बहुत अच्छा किये है ,अगर सबको हम भारत रत्न दिलाने कि मांग करने लगे तो शायद संभव नहीं होगा। वैसे भी सचिन किसी पहचान कि मोहताज नहीं है और न ही भारत रत्न के रूप में मिलनेवाले धन का उनके सामने कोई हैसियत है,ऐसे में सचिन कि चुप्पी या तो ये मान ली जाय कि वो भी इस तमगे कि आस में बैठे है अन्यथा उन्हें खुद कह देना चाहिए कि मुझे भारत रत्न नहीं चाहिए जिससे उनका कद और भी बड़ा हो जाता। भारत रत्न मुफलिसी में जी रहे छोटो को बड़ा बनाने के लिए उपयोग में लाना ही न्याय संगत है।
मैं सचिन का या उनको भारत रत्न देने का विरोधी नहीं,लेकिन भारत रत्न कि अपनी एक गरिमा है,मै ये भी नहीं कहता कि सचिन उस गरिमा के उपयुक्त है या नहीं लेकिन इतना तो जरूर है कि ऐसे बहुत नाम है जो अपने क्षेत्र में बहुत अच्छा किये है ,अगर सबको हम भारत रत्न दिलाने कि मांग करने लगे तो शायद संभव नहीं होगा। वैसे भी सचिन किसी पहचान कि मोहताज नहीं है और न ही भारत रत्न के रूप में मिलनेवाले धन का उनके सामने कोई हैसियत है,ऐसे में सचिन कि चुप्पी या तो ये मान ली जाय कि वो भी इस तमगे कि आस में बैठे है अन्यथा उन्हें खुद कह देना चाहिए कि मुझे भारत रत्न नहीं चाहिए जिससे उनका कद और भी बड़ा हो जाता। भारत रत्न मुफलिसी में जी रहे छोटो को बड़ा बनाने के लिए उपयोग में लाना ही न्याय संगत है।
रविवार, 26 दिसंबर 2010
शरद पवार को आखिर कांग्रेस क्यों ढोने की कशम खा रखी है
कांग्रेस के तथाकथित मनबढ़ मंत्री शरद पवार गरीबों की गरीबी के नाम जहर उगले जा रहे हैं। गेहूं सडा देंगे ,चावल सडा देंगे लेकिन रेट कम नहीं करेंगे,गरीबों में नहीं बाटेंगे। एक तरफ उनकी मुखिया सोनियां जी चिल्ला रही है की संगठन के खिलाफ कोई मंत्री बोला तो उसे निकल फेकेंगी,तो क्या ये मान लिया जाय की शरद पवार संगठन से बाहर होने वाले है या कांग्रेस उनकी इस नीति से सहमत है। और अगर ये दोनों बाते नहीं है तो कांग्रेस पार्टी ऐसे हेक्ढे को क्यों झेल रही है ,राजनैतिक स्वार्थ ,और उनकी बम्बैया पूंछ सब ठीक है लेकिन इतना ये गर गिरेंगे तो अल्ला ही जाने इनकी गति क्या होगी।
सोमवार, 20 दिसंबर 2010
राष्ट्र राज्य और अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता
काकोरी के शहीदों की याद में राष्ट्र राज्य और अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक गोष्ठी तो हुई वैचारिक बहसे भी हुई,लेकिन शीर्षक केंद्र में नहीं रहा। कारन की जब-जब विद्वानों को जोड़ने का प्रयास किया जाता है तब तब यही होता है। सच तो यह है की अभिब्यक्ति ही है जी कभी परतंत्र नहीं होती और इतना ही नहीं उसको जितना परतंत्र करने को कोशिश की जाती है वो उतना ही स्वतंत्र होती जाती है। बहुतेरे क्रांतिकारी नेता जो फासी पर तो चढ़ा दिए गए लेकिन उनकी अभिब्यक्ति अंग्रेजो के लिए ताबूत का कील साबित हुई। उनके विचार आज भी मरे हुए में जोश पैदा कर देती हैं। बहस चल ही रही थी की बीच में अपने भाषण के दौरान एक प्रोफ़ेसर साहब राम की तुलना लादेन से कर बैठे ,मैंने कहा अब कितनी अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता चाहिए आप लोगों को भाई। जब जान पर बाण आती है तो अभिब्यक्ति सबसे मजबूत स्थिति में होती है ,उन प्रोफ़ेसर साहब लोगों की मिलने वाली एक लाख तनख्वाह में से नब्बे हजार उनको दे दिया जाय और दस हजार गरीबो में बाट दिया जाय तो शायद किसी एक की ऐसी पहल न रह जायेगी और फिर जो इनकी अभिब्यक्ति होगी देखने योग्य होगी। अतः अभिब्यक्ति के छलावे मत गरीबों को घसीतिये अरुंधती रॉय कभी गरीब नहीं रही है,जिनके लिए आप लोग चिल्ला रहे है ।
गुरुवार, 16 दिसंबर 2010
देश को कंगाल बना रही कांग्रेस की नीतियां
आजादी के बाद देश की बागडोर ज्यादातर कांग्रेसी सरकारों के हाथ में रही है। महगाई और कोटेदारी,ठेकेदारी इनकी नीतियों में हैं। गरीब इनके एजेंडे के कभी हिस्से नहीं होते। और देश के गरीबों के नाम की अरबों खरब संपत्ति इनके अलमारियों की तो औकात नहीं की अपनी शोभा बढवा पाए लेकिन स्विटजरलैंड के बैंकों में वो पैसे बेनामी दिन झेलने को मजबूर होते हैं। इनके यहाँ जो जितना बड़ा ईमानदार छबि का होता है ,जब पोल खुलता है तो उतना बड़ा डकैत साबित होता है। बाबू जगजीवन राम भी सबसे इमानदार नेता के रूप में जगजाहिर थे,लेकिन बाद में इनकी रकम सुन कितनों के हृदयघात हो गए। पंडित सुखराम भी ऐसे ही टिकेदार ब्राम्हण थे संचार ही निगल गए।
आये दिन जन्जरूरत के चीजों का दम बढ़ानेवाले कांग्रेसियों का परिवार तो अधिकतर विदेशी आबोहवा में रहता है,उसे पेट्रोल और दाल की कीमत से क्या लेना देना । शरद पवार चिल्ला-चिल्ला के कह ही दिए की अनाज सदा देंगे लेकिन गरीबों को नहीं देंगे न ही सस्ता करेंगे,फिर भी कांग्रेस उन्हें सर आखों पर बैठाये हुई है,क्योंकि ये उसके टेस्ट के नेता हैं। ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री जी निश्चय ही इमानदार छबि के है लेकिन क्या कहा जाय अगर गरीबों के लिए नहीं खड़े हो सकने की ताकत है तो अब उनको खाने की कमी कभी थोड़े ही रहेगी ,न ही उनको और प्रसिध्ही ही अब मिल सकती,वो इतने ऊचे पड़ाव पर पहुच चुके है,तो कुर्सी की लालच क्यों लगाये हुए है ,जाए राम -राम करे। या फिर मान लें की हर गड़बड़ी उनकी जानकारी में हो रहे है। देश के आईने में अपना प्रतिबिम्ब एक ईमानदार और उनके सरीखे विद्वान आदमी को नहीं खरब करना चाहिए ।
आये दिन जन्जरूरत के चीजों का दम बढ़ानेवाले कांग्रेसियों का परिवार तो अधिकतर विदेशी आबोहवा में रहता है,उसे पेट्रोल और दाल की कीमत से क्या लेना देना । शरद पवार चिल्ला-चिल्ला के कह ही दिए की अनाज सदा देंगे लेकिन गरीबों को नहीं देंगे न ही सस्ता करेंगे,फिर भी कांग्रेस उन्हें सर आखों पर बैठाये हुई है,क्योंकि ये उसके टेस्ट के नेता हैं। ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री जी निश्चय ही इमानदार छबि के है लेकिन क्या कहा जाय अगर गरीबों के लिए नहीं खड़े हो सकने की ताकत है तो अब उनको खाने की कमी कभी थोड़े ही रहेगी ,न ही उनको और प्रसिध्ही ही अब मिल सकती,वो इतने ऊचे पड़ाव पर पहुच चुके है,तो कुर्सी की लालच क्यों लगाये हुए है ,जाए राम -राम करे। या फिर मान लें की हर गड़बड़ी उनकी जानकारी में हो रहे है। देश के आईने में अपना प्रतिबिम्ब एक ईमानदार और उनके सरीखे विद्वान आदमी को नहीं खरब करना चाहिए ।
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
Check out Pitney Bowes India Launches 'DocWell'
Title: Pitney Bowes India Launches 'DocWell'
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जाने -अनजाने में आतंकवादियों के हौसले बढ़ा रहीं सरकार की ध्वस्त नीतियां
देश में हर सुरक्षा व्यवस्था की बधिया उकेर रही आतंकवादी घटनाएं कहीं न कहीं इन आतंकवादियों के हौसले में इजाफा कर रही हैं। हमारे यहाँ ब्लास्ट होता है और अमेरिका सावधान होजाता है,उदाहरा के लिए आये दिन हम उनकी एअरपोर्ट चेकिंग में राजनयिकों के साथ दुर्व्यवहार की खबर पढ़ते हैं,और सिर्फ उनकी सुरक्षा की कडाई को गलियां देते है,कारण की हम ऐसा नहीं कर पाते। सुरक्षा व्यवस्था तो अस्वस्थ स्थिति में है ही दाद में खाज का काम कर रही है,जो पकडे गए आतंकवादी हैं उनकी दामादी सुरक्षा और मेहमानवाजी। समझ में नहीं आता की क्या न्यायलय अगर इन आतंकवादीयों को निरपराध साबित कर ही दे तो हम ये मान लें की वे हत्यारे नहीं है,और कहना बहोत गलत नहीं होगा की सरकार जैसे उन्हें निरपराधी सुनने की ही बाट जोह रही हो।
हमारे देश में ऐसे दुर्घटनाओं में मारे जानेके बाद मुवावजे पर भी बड़ा झगडा होता है। और फिर सरकार दिल खोल कर खर्च करने पर उतारू होती है ,और फिर उसकी देख रेख भी भूल जाती है,जो आदर्श सोसाइटी जैसे घोटालों को जन्म देते हैं और मुफ्त में मिलने वाले फ्लैट्स को करोड़ों में दुसरे को बेच दिया जाता है। फिर मामला खुलता है,उस पर जांच बैठती है,करोड़ों रूपये की आहुति चढ़ती है,तब तक हो हल्ला होता है जब तक कोई दूसरा मामला घोटाले का रूप ले दरवाजा न खटखटा रहा हो,और पहले वाले की इतिश्री ।
सुरक्षा तंत्रों की हर पल की पोल खोलते है वर्दीधारी सिपाही जो सिर्फ वसूली में लगे रहते है,कैसे वो राजा हो जाए। करोड़ों की संपत्ति एक सिपाही के पास है। सरकारी तंत्र के लोग भी दो चार दिन फास्ट रहते है,किसी दुर्घटना के बाद,फिर वही पुराना ढर्रा। कई अखबारों ने बनारस घटना के दुसरे दिन से ही यहाँ की सुरक्षा की पोल खोलनी शुरू कर दी ,तंत्रों को तो मानो ये सब झेलने की आदत हो गयी हो। अभी किसी वी आई पी के आने की खबर होगी तो रातोरात सड़कें बन जायेंगी,नक्के-नक्के पे सिपाही अपने वर्दी की हरयाली से नाक में दम कर देंगे ,लेकिन अभी अपनी रोज की ड्यूटी की बात हो तो इनकी नानी मरती है। जनता के पैसे पर ये पलते है,सिर्फ ये कहना गलत होगा,जोभी बड़े राजनेता या अधिकारी है,लेकिन जनता ही इनके एजेंडे में नहीं होते।
कब तक हम इन्तजार करते रहेंगे इनके सुधरने की,जनता खुद जिस दिन अपने निजी स्वार्थों को थोडा ताज दुसरे की भी सोंचने लगेगी,उस दिन इनको भी सुधारना मजबूरी हो जायेगी,और जिस दिन हम सभी अपनी वास्तविक भूमिका में आ गये उस दिन इस दो तकिये आतंकवादियों की क्या औकात है,हम उन्हें समझा लेंगे। भाग दौड़ वाली जिन्दगी में लोक विचार के लिए लोगों के पास समय नहीं रह गया साथ ही ऐसी बातों में रूचि भी नहीं है। इसलिए जरूरत है तो विचार मंचों की,उनके पहल की क्योंकि विचार काभी अकेला नहीं होता,और कमजोर नहीं होता।
हमारे देश में ऐसे दुर्घटनाओं में मारे जानेके बाद मुवावजे पर भी बड़ा झगडा होता है। और फिर सरकार दिल खोल कर खर्च करने पर उतारू होती है ,और फिर उसकी देख रेख भी भूल जाती है,जो आदर्श सोसाइटी जैसे घोटालों को जन्म देते हैं और मुफ्त में मिलने वाले फ्लैट्स को करोड़ों में दुसरे को बेच दिया जाता है। फिर मामला खुलता है,उस पर जांच बैठती है,करोड़ों रूपये की आहुति चढ़ती है,तब तक हो हल्ला होता है जब तक कोई दूसरा मामला घोटाले का रूप ले दरवाजा न खटखटा रहा हो,और पहले वाले की इतिश्री ।
सुरक्षा तंत्रों की हर पल की पोल खोलते है वर्दीधारी सिपाही जो सिर्फ वसूली में लगे रहते है,कैसे वो राजा हो जाए। करोड़ों की संपत्ति एक सिपाही के पास है। सरकारी तंत्र के लोग भी दो चार दिन फास्ट रहते है,किसी दुर्घटना के बाद,फिर वही पुराना ढर्रा। कई अखबारों ने बनारस घटना के दुसरे दिन से ही यहाँ की सुरक्षा की पोल खोलनी शुरू कर दी ,तंत्रों को तो मानो ये सब झेलने की आदत हो गयी हो। अभी किसी वी आई पी के आने की खबर होगी तो रातोरात सड़कें बन जायेंगी,नक्के-नक्के पे सिपाही अपने वर्दी की हरयाली से नाक में दम कर देंगे ,लेकिन अभी अपनी रोज की ड्यूटी की बात हो तो इनकी नानी मरती है। जनता के पैसे पर ये पलते है,सिर्फ ये कहना गलत होगा,जोभी बड़े राजनेता या अधिकारी है,लेकिन जनता ही इनके एजेंडे में नहीं होते।
कब तक हम इन्तजार करते रहेंगे इनके सुधरने की,जनता खुद जिस दिन अपने निजी स्वार्थों को थोडा ताज दुसरे की भी सोंचने लगेगी,उस दिन इनको भी सुधारना मजबूरी हो जायेगी,और जिस दिन हम सभी अपनी वास्तविक भूमिका में आ गये उस दिन इस दो तकिये आतंकवादियों की क्या औकात है,हम उन्हें समझा लेंगे। भाग दौड़ वाली जिन्दगी में लोक विचार के लिए लोगों के पास समय नहीं रह गया साथ ही ऐसी बातों में रूचि भी नहीं है। इसलिए जरूरत है तो विचार मंचों की,उनके पहल की क्योंकि विचार काभी अकेला नहीं होता,और कमजोर नहीं होता।
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010
ग़मों में मुस्कराती युवा पीढ़ी
आल इस वेल के तर्ज पर पूरा -पूरा युवा समाज चल रहा है। कहने को तो चैन सुकून नहीं है लेकिन मुस्कराने के आदी से हो गए हैं। पहले के लोगों यानि हमारे बुजुर्गों की तुलना में आज के युवाओं की यही अदा उन्हें उन लोगों से अलग कर देती है । पुराने लोगों के दर्द जुबान पे आजाते थे लेकिन आज इसका प्रतिशत बड़ा ही कम है। निश्चय ही ये युवा धैर्य विचारणीय है। किसी की मुस्कान और चेहरे की लकीरे पहले उसकी माली हालत को आसानी से बयां कर देती थी। लेकिन आज ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत की तर्ज पर युवा समाज अपनी हँसी को कायम करने पर तुला है। पहले पतलून फटते थे तो उसे सिलने का प्रयास होता था आज उसे और फाड़ कर एक नया अंदाज इजाद कर दिया जाता है। और फिर लोग अपनी नई पतलून फाड़ के पहनने लगते है,इतना ही नहीं कम्पनियाँ फटी डिजाइन वाली पतलून बनाने भी लगती है।
इससे चिंतित होने की कत्तई जरूरत नहीं है निश्चय ही आज का युवा मन ज्यादा सामंजस्य स्थापित कर लेता है बनस्पत पुरानों के। इसलिए जरूरत है तो इस जोशीले अंदाज को प्रशंसनीय बनाने का , बाकी काम ये खुद कर लेंगे। वैसे तो दुनिया भर में लाफ्टर चैनल्स काम कर रहे है,गुदगुदाना ही उनका व्यवसाय है जहा लोग मुह में अंगुली डाल-डाल हँसते है,लेकिन किसी के चेहरे पर एक मुस्कान ला देना जो चैन और सुकून देगा उसे सिर्फ और सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है। तो आइये युवाओं के आदर्श पर चलते हुए उनकी हँसी और मुस्कान कास्वागत किसी रोते हुए को हँसाने के सुख और सेज पर सोने का एक छोटा सा प्रयास कर ही लिया जाय,क्या आप भी चल रहे हैं।
इससे चिंतित होने की कत्तई जरूरत नहीं है निश्चय ही आज का युवा मन ज्यादा सामंजस्य स्थापित कर लेता है बनस्पत पुरानों के। इसलिए जरूरत है तो इस जोशीले अंदाज को प्रशंसनीय बनाने का , बाकी काम ये खुद कर लेंगे। वैसे तो दुनिया भर में लाफ्टर चैनल्स काम कर रहे है,गुदगुदाना ही उनका व्यवसाय है जहा लोग मुह में अंगुली डाल-डाल हँसते है,लेकिन किसी के चेहरे पर एक मुस्कान ला देना जो चैन और सुकून देगा उसे सिर्फ और सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है। तो आइये युवाओं के आदर्श पर चलते हुए उनकी हँसी और मुस्कान कास्वागत किसी रोते हुए को हँसाने के सुख और सेज पर सोने का एक छोटा सा प्रयास कर ही लिया जाय,क्या आप भी चल रहे हैं।
बुधवार, 8 दिसंबर 2010
आतंकवाद और आतंकवादी कायर और कायरता के सबसे बड़े पर्यायवाची
आतंकवाद से बड़ी कोई कायरता नहीं हो सकती और आतंकवादियों से बड़ा कोई कायर नहीं हो सकता। यही अपराध और आतंकवाद का अंतर है। हर अपराध आतंवाद नहीं होता । ये अपराध की बडाई नहीं है लेकिन कम से कम एक अपराधी लक्ष्य कर किसी एक को मारता है,पर इन कायर आतंकवादियों का तो कोई लक्ष्य ही नहीं,बच्चा,बूढा, बेहाल,कभी अनजाने में हो सकता है इनके तथाकथित अपने भी इनके घटिया कृत्य के शिकार होते हैं। जिसको कायरता भी कहने में शर्म आती है।
इस तरह की लुकाछिपी ,करके मार देना ,इनकी कलुषित सोंच के अलावा कुछ भी नहीं है। वैसे भी बनारस जैसे मस्तों के शहर में तो उनके मायूसी फ़ैलाने की एक न चलेगी। भूतभावन की नगरी काभी आतंक के आगोश में नहीं आती । फिर सुबह कचौड़िया छनी ,जलेबियाँ बनी,पान और भांग रमें लोग बरबस हर चौराहे पर इनकी कृत्य को गाली देते सुने जा सकते हैं। किसी पर शक करने की जरूरत नहीं, ये बनारसी अक्खडपन किसी को थमने नहीं देंगे। ईश्वर इसमें घायल लोगों को जल्दी से ठीक करे और हताहतों की आत्मा को शांति दें,। और इन निरीह कायरों को सदबुद्धि दें ,दया के पात्र इस भुक्तभोगी नहीं बल्कि ये कायर हैं जिन्हें हम आतंकवादी कहते हैं।
जय हिंद,जय बनारस।
इस तरह की लुकाछिपी ,करके मार देना ,इनकी कलुषित सोंच के अलावा कुछ भी नहीं है। वैसे भी बनारस जैसे मस्तों के शहर में तो उनके मायूसी फ़ैलाने की एक न चलेगी। भूतभावन की नगरी काभी आतंक के आगोश में नहीं आती । फिर सुबह कचौड़िया छनी ,जलेबियाँ बनी,पान और भांग रमें लोग बरबस हर चौराहे पर इनकी कृत्य को गाली देते सुने जा सकते हैं। किसी पर शक करने की जरूरत नहीं, ये बनारसी अक्खडपन किसी को थमने नहीं देंगे। ईश्वर इसमें घायल लोगों को जल्दी से ठीक करे और हताहतों की आत्मा को शांति दें,। और इन निरीह कायरों को सदबुद्धि दें ,दया के पात्र इस भुक्तभोगी नहीं बल्कि ये कायर हैं जिन्हें हम आतंकवादी कहते हैं।
जय हिंद,जय बनारस।
मंगलवार, 7 दिसंबर 2010
टेलीविजन कायक्रमों की हदें
आये दिन तमाम चैनलों पर ऐसे कार्यक्रम बढ़ते जा रहे हैं,जिनका न तो कोई सामाजिक सरोकार है,न ही किसी रूप में वो नई पीढ़ी के लिए लाभप्रद साबित हो सकती हैं। हदें तो तब पार हो जाती है जब घर की बंद कोठारी में होने वाली गंदगियों को दुनियां भर के चैनलों पर दिखने को हम अपनी तरक्की समझने लगे हैं। अब बिग बॉस जैसे कार्यक्रम को ही ले लीजिये,ये आडीसन के नाम पर सिर्फ और सिर्फ छलावा है,शायद यही कारण नरः की इसके शुरुआती दौर में ही सेंसर बोर्ड द्वारा इस पर रोक लगाया गया था,फिर पता नहीं कौन सा जादू चलाया इन लोगो ने की इसे अनुमति मिल गयी। मेरे इस विचार को कत्तई किसी प्रतियोगी के विचारों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए,लेकिन जब ऐसे छोटे-मोटे कार्यक्रमों की ये साफगोई है तो बड़ी-बड़ी सिनेमा वगैरह में किस हद तक लोगों को अपने स्वाभिमान से समझौता करना पड़ता होगा। नई पीढ़ी ग्लैमर की चमक के अर्दब में आ जाती है,लेकिन ऐसे कार्यक्रम उसके किसी पसंदीदा के प्रति घृणा के अलावा और कुछ नहीं दे सकते। साथ ही ये मानसिक बुराइयों और छिछोरेपन को सीधे निमंत्रण के अलावा और कुछ भी नहीं है ।
अतः इसे ही नहीं ऐसे किसी भी कार्यक्रम को तत्काल बंद करना चाहिए।
अतः इसे ही नहीं ऐसे किसी भी कार्यक्रम को तत्काल बंद करना चाहिए।
गुरुवार, 2 दिसंबर 2010
सरकारी लूट और निठल्लेपन के बढ़ते खतरे
किसी भी देश में भ्रष्टाचार की हदें तब पार कर जाती है,जब नीचे से ऊपर तक इसके फंदे बिछे हुए होते हैं। किसको सही कहें और विश्वास का स्वास भरें समझना कठिन है। चाँद पैसे की खातिर गलत करना तक ही यहाँ गलत नहीं रह गया है,सरकारी महकमों से जुड़े लोग कुछ भी करना चाहते ही नहीं,उनका सारा समय एफडी और वित्तीय सुविधाओं की जानकारी करने में लग जाता है,कारण उनको इतना अधिक पैसा मिलने लगा है।
अभी एड्स दिवस पर कई बड़े डॉक्टरों की कलई खुली,जो कैसा व्यवहार करते है,वो अपने रोगियों के साथ ,जिनकी सेवा की रोटी खाते हैं वो। सर सुन्दर लाल अस्पताल बीएचयू जिसके विषय में अखबार वाले भी छपने से कतराते हैं की स्थिति ये है की वहां पहुचने वाले रोगियों के साथ ये डाक्टर साहब लोग ऐसा व्यवहार करते है,मानो ये किसी दुसरे गृह से आये हों। सब तो सब जो रेसिडेंट अभी पीजी का छात्र होता है,और ट्रेनिंग के लिए रेजिडेंट डाक्टर के रूप में कार्यरत होता है,उसकी गति यह है की किसी बुजुर्ग को भी आप नहीं कह सकता तुम तो मानो उनकी छठी में दाल दिया गया हो। ये है सरकारी छुआछूत का ऐठन।
ऐसे में सबसे पहले जरूरी है की ,बढाई हुई छठां वेतन की तनख्वाह वापस करना तो हवा-हवाई हो जाएगा लेकिन कषम खा लेना की इनको अगले पच्चीस सालों तक अब इसी वेतन पर काम करना है,नीचे से ऊपर तक सारे महकमों के सारे कर्मचारियों के साथ। उसके बाद बदली तस्बीर सामने होगी,इनकी औकात की थाली में,क्योंकि सरकारी नौकरों का मन का बढ़ना लोकशाही का बढ़ना है,जो कभी सत्य का नुमैन्दगार नहीं हो सकता। इनके खिलाफ भी सड़कों पर देर सबेर उतरना ही होगा,तभी सच्चा भारत दिखेगा।
अभी एड्स दिवस पर कई बड़े डॉक्टरों की कलई खुली,जो कैसा व्यवहार करते है,वो अपने रोगियों के साथ ,जिनकी सेवा की रोटी खाते हैं वो। सर सुन्दर लाल अस्पताल बीएचयू जिसके विषय में अखबार वाले भी छपने से कतराते हैं की स्थिति ये है की वहां पहुचने वाले रोगियों के साथ ये डाक्टर साहब लोग ऐसा व्यवहार करते है,मानो ये किसी दुसरे गृह से आये हों। सब तो सब जो रेसिडेंट अभी पीजी का छात्र होता है,और ट्रेनिंग के लिए रेजिडेंट डाक्टर के रूप में कार्यरत होता है,उसकी गति यह है की किसी बुजुर्ग को भी आप नहीं कह सकता तुम तो मानो उनकी छठी में दाल दिया गया हो। ये है सरकारी छुआछूत का ऐठन।
ऐसे में सबसे पहले जरूरी है की ,बढाई हुई छठां वेतन की तनख्वाह वापस करना तो हवा-हवाई हो जाएगा लेकिन कषम खा लेना की इनको अगले पच्चीस सालों तक अब इसी वेतन पर काम करना है,नीचे से ऊपर तक सारे महकमों के सारे कर्मचारियों के साथ। उसके बाद बदली तस्बीर सामने होगी,इनकी औकात की थाली में,क्योंकि सरकारी नौकरों का मन का बढ़ना लोकशाही का बढ़ना है,जो कभी सत्य का नुमैन्दगार नहीं हो सकता। इनके खिलाफ भी सड़कों पर देर सबेर उतरना ही होगा,तभी सच्चा भारत दिखेगा।
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