आल इस वेल के तर्ज पर पूरा -पूरा युवा समाज चल रहा है। कहने को तो चैन सुकून नहीं है लेकिन मुस्कराने के आदी से हो गए हैं। पहले के लोगों यानि हमारे बुजुर्गों की तुलना में आज के युवाओं की यही अदा उन्हें उन लोगों से अलग कर देती है । पुराने लोगों के दर्द जुबान पे आजाते थे लेकिन आज इसका प्रतिशत बड़ा ही कम है। निश्चय ही ये युवा धैर्य विचारणीय है। किसी की मुस्कान और चेहरे की लकीरे पहले उसकी माली हालत को आसानी से बयां कर देती थी। लेकिन आज ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत की तर्ज पर युवा समाज अपनी हँसी को कायम करने पर तुला है। पहले पतलून फटते थे तो उसे सिलने का प्रयास होता था आज उसे और फाड़ कर एक नया अंदाज इजाद कर दिया जाता है। और फिर लोग अपनी नई पतलून फाड़ के पहनने लगते है,इतना ही नहीं कम्पनियाँ फटी डिजाइन वाली पतलून बनाने भी लगती है।
इससे चिंतित होने की कत्तई जरूरत नहीं है निश्चय ही आज का युवा मन ज्यादा सामंजस्य स्थापित कर लेता है बनस्पत पुरानों के। इसलिए जरूरत है तो इस जोशीले अंदाज को प्रशंसनीय बनाने का , बाकी काम ये खुद कर लेंगे। वैसे तो दुनिया भर में लाफ्टर चैनल्स काम कर रहे है,गुदगुदाना ही उनका व्यवसाय है जहा लोग मुह में अंगुली डाल-डाल हँसते है,लेकिन किसी के चेहरे पर एक मुस्कान ला देना जो चैन और सुकून देगा उसे सिर्फ और सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है। तो आइये युवाओं के आदर्श पर चलते हुए उनकी हँसी और मुस्कान कास्वागत किसी रोते हुए को हँसाने के सुख और सेज पर सोने का एक छोटा सा प्रयास कर ही लिया जाय,क्या आप भी चल रहे हैं।
bahut sahi guru.
जवाब देंहटाएंek dam sahee kaha aapne.
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