मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

जाने -अनजाने में आतंकवादियों के हौसले बढ़ा रहीं सरकार की ध्वस्त नीतियां

देश में हर सुरक्षा व्यवस्था की बधिया उकेर रही आतंकवादी घटनाएं कहीं न कहीं इन आतंकवादियों के हौसले में इजाफा कर रही हैं। हमारे यहाँ ब्लास्ट होता है और अमेरिका सावधान होजाता है,उदाहरा के लिए आये दिन हम उनकी एअरपोर्ट चेकिंग में राजनयिकों के साथ दुर्व्यवहार की खबर पढ़ते हैं,और सिर्फ उनकी सुरक्षा की कडाई को गलियां देते है,कारण की हम ऐसा नहीं कर पाते। सुरक्षा व्यवस्था तो अस्वस्थ स्थिति में है ही दाद में खाज का काम कर रही है,जो पकडे गए आतंकवादी हैं उनकी दामादी सुरक्षा और मेहमानवाजी। समझ में नहीं आता की क्या न्यायलय अगर इन आतंकवादीयों को निरपराध साबित कर ही दे तो हम ये मान लें की वे हत्यारे नहीं है,और कहना बहोत गलत नहीं होगा की सरकार जैसे उन्हें निरपराधी सुनने की ही बाट जोह रही हो।
हमारे देश में ऐसे दुर्घटनाओं में मारे जानेके बाद मुवावजे पर भी बड़ा झगडा होता है। और फिर सरकार दिल खोल कर खर्च करने पर उतारू होती है ,और फिर उसकी देख रेख भी भूल जाती है,जो आदर्श सोसाइटी जैसे घोटालों को जन्म देते हैं और मुफ्त में मिलने वाले फ्लैट्स को करोड़ों में दुसरे को बेच दिया जाता है। फिर मामला खुलता है,उस पर जांच बैठती है,करोड़ों रूपये की आहुति चढ़ती है,तब तक हो हल्ला होता है जब तक कोई दूसरा मामला घोटाले का रूप ले दरवाजा न खटखटा रहा हो,और पहले वाले की इतिश्री ।
सुरक्षा तंत्रों की हर पल की पोल खोलते है वर्दीधारी सिपाही जो सिर्फ वसूली में लगे रहते है,कैसे वो राजा हो जाए। करोड़ों की संपत्ति एक सिपाही के पास है। सरकारी तंत्र के लोग भी दो चार दिन फास्ट रहते है,किसी दुर्घटना के बाद,फिर वही पुराना ढर्रा। कई अखबारों ने बनारस घटना के दुसरे दिन से ही यहाँ की सुरक्षा की पोल खोलनी शुरू कर दी ,तंत्रों को तो मानो ये सब झेलने की आदत हो गयी हो। अभी किसी वी आई पी के आने की खबर होगी तो रातोरात सड़कें बन जायेंगी,नक्के-नक्के पे सिपाही अपने वर्दी की हरयाली से नाक में दम कर देंगे ,लेकिन अभी अपनी रोज की ड्यूटी की बात हो तो इनकी नानी मरती है। जनता के पैसे पर ये पलते है,सिर्फ ये कहना गलत होगा,जोभी बड़े राजनेता या अधिकारी है,लेकिन जनता ही इनके एजेंडे में नहीं होते।
कब तक हम इन्तजार करते रहेंगे इनके सुधरने की,जनता खुद जिस दिन अपने निजी स्वार्थों को थोडा ताज दुसरे की भी सोंचने लगेगी,उस दिन इनको भी सुधारना मजबूरी हो जायेगी,और जिस दिन हम सभी अपनी वास्तविक भूमिका में आ गये उस दिन इस दो तकिये आतंकवादियों की क्या औकात है,हम उन्हें समझा लेंगे। भाग दौड़ वाली जिन्दगी में लोक विचार के लिए लोगों के पास समय नहीं रह गया साथ ही ऐसी बातों में रूचि भी नहीं है। इसलिए जरूरत है तो विचार मंचों की,उनके पहल की क्योंकि विचार काभी अकेला नहीं होता,और कमजोर नहीं होता।

1 टिप्पणी:

  1. anzane me naheen jan boozh har atankawadi pale zate hai ..bhai sahab unka vote pakka hota hai , jitna din tak Afzal guru (parliament attack) ki saza roki zayegi utna muslim / atankwadi vote me izafa hoga.

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