मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

टेलीविजन कायक्रमों की हदें

आये दिन तमाम चैनलों पर ऐसे कार्यक्रम बढ़ते जा रहे हैं,जिनका न तो कोई सामाजिक सरोकार है,न ही किसी रूप में वो नई पीढ़ी के लिए लाभप्रद साबित हो सकती हैं। हदें तो तब पार हो जाती है जब घर की बंद कोठारी में होने वाली गंदगियों को दुनियां भर के चैनलों पर दिखने को हम अपनी तरक्की समझने लगे हैं। अब बिग बॉस जैसे कार्यक्रम को ही ले लीजिये,ये आडीसन के नाम पर सिर्फ और सिर्फ छलावा है,शायद यही कारण नरः की इसके शुरुआती दौर में ही सेंसर बोर्ड द्वारा इस पर रोक लगाया गया था,फिर पता नहीं कौन सा जादू चलाया इन लोगो ने की इसे अनुमति मिल गयी। मेरे इस विचार को कत्तई किसी प्रतियोगी के विचारों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए,लेकिन जब ऐसे छोटे-मोटे कार्यक्रमों की ये साफगोई है तो बड़ी-बड़ी सिनेमा वगैरह में किस हद तक लोगों को अपने स्वाभिमान से समझौता करना पड़ता होगा। नई पीढ़ी ग्लैमर की चमक के अर्दब में आ जाती है,लेकिन ऐसे कार्यक्रम उसके किसी पसंदीदा के प्रति घृणा के अलावा और कुछ नहीं दे सकते। साथ ही ये मानसिक बुराइयों और छिछोरेपन को सीधे निमंत्रण के अलावा और कुछ भी नहीं है ।
अतः इसे ही नहीं ऐसे किसी भी कार्यक्रम को तत्काल बंद करना चाहिए।

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