गत की पूर्णाहुति आगत का संकल्प
हर बरस के बीते सालों की तरह वर्ष 2012 की पूर्णाहुति भी समय के सचल भाव का बोध करा रही है ।अंततः यह भी हमारा साथ छोड़ने की जिद ठान आज आ धमका है।क्या खोया क्या पाया पर अगर तटस्थ विचार करने की गलती किया जाय तो हम पायेंगे कई प्रदेशों में सत्ता परिवर्तन हुआ ,कही गेरुआ बढा तो कही टोपी चढी ,पर देश की टोपी हर हाल में उछली इतनी उछली की अंत रुआंसा हो गया।लोकतंत्र में तंत्र छाया रहा लेकिन लोक का सर्वथा अभाव रहा ।रसोई भारी हुई और जनता अपने चुनाव की आभारी हुई ।रेत पर नाम लिख मोमबत्तियां जलाना परचम पर रहा।खूब लूटा गया खूब लुटाया गया ,जनता तमाशबीन थपोड़ी बजाने से बाज भी नहीं आई।
देश को एक आम मिला मौसमी से बरहोमासी बन गया।अब देखना है आम के कोल्ड स्टोरज उसे कितने दिनों तक सजो पाते हैं।अंतिम महीने में फिर देश गरम हुआ गर्माहट की वजह अंतर्राष्ट्रीय शर्मसारक बना ।नदियों में बाढ़ आयी कही गंगा में ,कही गोमती में ,कही जमुना में तो बनारस में असि और वरुणा भी उफनाने से बाज नहीं आयी।असि तो कुछ लोगों का अंत देश से भी बुरा की और शुरुआत भी रक्तचाप से ही गुजरने देगी।मनरेगा चहका पेड़ भले न लगे गड्ढे ही गड्ढे खुदे।पैसे पेड़ पर नहीं उगते जैसी नसीहत जनता को मुफ्त में मिली।देश के प्रथम नागरिक को विश्वविद्यालयों में हुंकार भरनी पड़ी कि विश्वविद्यालयों से चेतना निकालनी चाहिए ,,छात्रों को छात्रों का मंच मिला ,बीएचयूं में फिर भी प्रणब दादा के शब्दों की चेतना को रोकने का पूरा पूरा प्रयास हुआ ,अभी भी जारी है।इन्तजार करना है आगे आने वाले 2013 में रसोई गैस कौन चौकाने वाली खबर देती है ,गाय खरीदिये दूध पीजिये ,उपले तैयार कीजिये टाइल्स तोडिये ।पान दुकान भी भी शैक्षणिक डिग्रियां बाँट सकती हैं स्वागत के लिए हाथ में कटोरे की व्यवस्था की तत्परता की जरुरत है ।पड़ोसी कसाब गया घरेलू कसाबों की काफिलों का क़तार लिफ्ट देने को तैयार मिलेगी ।
फिर भी हम आदी हैं बन्दर क्या जाने आदी का स्वाद,,हम मनुष्य है वो भी भारतीय मनुष्य ,,मना के ही छोड़ेंगे अंत और प्रथम को ,,,,,अंततः गत की पूर्णाहुति हुई आगत का स्वागत हमारा फर्ज मिश्रित धर्मं है जिसे हम निभाते रहे हैं ,,,,एक दो बाते हों तो संकल्प लें ,,,ढेर सारे अनगिनत संकल्पों के साथ फिर नव वर्ष के मंगलमय होने की कामना आप सबके लिए करने की गुस्ताखी करता हूँ ....।
हर बरस के बीते सालों की तरह वर्ष 2012 की पूर्णाहुति भी समय के सचल भाव का बोध करा रही है ।अंततः यह भी हमारा साथ छोड़ने की जिद ठान आज आ धमका है।क्या खोया क्या पाया पर अगर तटस्थ विचार करने की गलती किया जाय तो हम पायेंगे कई प्रदेशों में सत्ता परिवर्तन हुआ ,कही गेरुआ बढा तो कही टोपी चढी ,पर देश की टोपी हर हाल में उछली इतनी उछली की अंत रुआंसा हो गया।लोकतंत्र में तंत्र छाया रहा लेकिन लोक का सर्वथा अभाव रहा ।रसोई भारी हुई और जनता अपने चुनाव की आभारी हुई ।रेत पर नाम लिख मोमबत्तियां जलाना परचम पर रहा।खूब लूटा गया खूब लुटाया गया ,जनता तमाशबीन थपोड़ी बजाने से बाज भी नहीं आई।
देश को एक आम मिला मौसमी से बरहोमासी बन गया।अब देखना है आम के कोल्ड स्टोरज उसे कितने दिनों तक सजो पाते हैं।अंतिम महीने में फिर देश गरम हुआ गर्माहट की वजह अंतर्राष्ट्रीय शर्मसारक बना ।नदियों में बाढ़ आयी कही गंगा में ,कही गोमती में ,कही जमुना में तो बनारस में असि और वरुणा भी उफनाने से बाज नहीं आयी।असि तो कुछ लोगों का अंत देश से भी बुरा की और शुरुआत भी रक्तचाप से ही गुजरने देगी।मनरेगा चहका पेड़ भले न लगे गड्ढे ही गड्ढे खुदे।पैसे पेड़ पर नहीं उगते जैसी नसीहत जनता को मुफ्त में मिली।देश के प्रथम नागरिक को विश्वविद्यालयों में हुंकार भरनी पड़ी कि विश्वविद्यालयों से चेतना निकालनी चाहिए ,,छात्रों को छात्रों का मंच मिला ,बीएचयूं में फिर भी प्रणब दादा के शब्दों की चेतना को रोकने का पूरा पूरा प्रयास हुआ ,अभी भी जारी है।इन्तजार करना है आगे आने वाले 2013 में रसोई गैस कौन चौकाने वाली खबर देती है ,गाय खरीदिये दूध पीजिये ,उपले तैयार कीजिये टाइल्स तोडिये ।पान दुकान भी भी शैक्षणिक डिग्रियां बाँट सकती हैं स्वागत के लिए हाथ में कटोरे की व्यवस्था की तत्परता की जरुरत है ।पड़ोसी कसाब गया घरेलू कसाबों की काफिलों का क़तार लिफ्ट देने को तैयार मिलेगी ।
फिर भी हम आदी हैं बन्दर क्या जाने आदी का स्वाद,,हम मनुष्य है वो भी भारतीय मनुष्य ,,मना के ही छोड़ेंगे अंत और प्रथम को ,,,,,अंततः गत की पूर्णाहुति हुई आगत का स्वागत हमारा फर्ज मिश्रित धर्मं है जिसे हम निभाते रहे हैं ,,,,एक दो बाते हों तो संकल्प लें ,,,ढेर सारे अनगिनत संकल्पों के साथ फिर नव वर्ष के मंगलमय होने की कामना आप सबके लिए करने की गुस्ताखी करता हूँ ....।